‘रोटरी क्लब ऑफ म्हापसा’ द्वारा आयोजित अर्पण व्याख्यान माला में ‘क्या न्यायव्यवस्था का एक ही मार्ग रह गया है ?’ विषय पर बोलते हुए डॉ. सुब्रह्मण्यम् स्वामी ने प्रतिपादित किया कि देश के ४४ लाख ५० सहस्र मंदिरों को सरकार द्वारा नियंत्रण में लिया गया है; जबकि एक भी मस्जिद अथवा चर्च नियंत्रण में नहीं लिया गया । मंदिर की कुल आयमें से केवल ६ से ७ प्रतिशत निधि मंदिर की व्यवस्था पर व्यय की जाती है । शेष निधि भ्रष्टाचार द्वारा हडप की जाती है । मंदिरों से प्राप्त निधि हज यात्राके लिए दी जाती है । संसद, प्रशासन एवं पत्रकारिता लोकतंत्रके ये तीन स्तंभ ढह गए हैं । उन्हें खडा करने के लिए न्यायसंस्था उत्तम पर्याय है । इस पर्याय का उचित उपयोग कर न्यायालयीन अंकुश द्वारा पूरी बिगडी व्यवस्था में सुधार लाना संभव है ।
इस अवसर पर डॉ. स्वामीने श्रोताओं को रामसेतु का तोडना एवं केरल के नटराज मंदिर का सरकारी करण रोकने हेतु सफलता पूर्वक की गई न्यायालयीन लडाई के संदर्भ में बताया ।
डॉ. स्वामीने कहा, ‘भ्रष्टाचार तथा काम के बोझ के कारण जनप्रतिनिधि साधारण जनता की समस्याओं पर समाधान नहीं ढूंढ पाते । प्रशासकीय तंत्र भ्रष्टता से ग्रसित हैं । ऐसी स्थितिमें न्यायालय में जाना ही उपयुक्त पर्याय सिद्ध होता है । जो लोग न्यायालय में नहीं जा सकते उनके लिए न्यायालय ने जनहित की दृष्टि से वर्ष १९८१ में न्यायालय में जाने का अधिकार दिया । तदुपरांत जनहित याचिका का पर्याय आया । केवल भारत में जनहित याचिका प्रविष्ट करने का अधिकार है, जो देश में अधिकाधिक जागृत शिक्षित वर्ग सिद्ध होने का परिणाम है । मैंने २-जी स्पेक्ट्रम घोटाले के विरुद्ध न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की थी, जिसके फलस्वरूप न्यायालय ने सरकार द्वारा दिया गया २-जी स्पेक्ट्रम का ठेका निरस्त कर दिया ।’
न्यायालयीन लडाई द्वारा डॉ. सुब्रह्मण्यम् स्वामी का हिंदुओं को न्याय दिलाने के उदाहरण:
डॉ. स्वामीने कहा,
१. ‘रामद्वारा सेतु का निर्माण कार्य किया गया, यह सत्य इतिहास है । हिंदुद्वेषी करुणानिधि ने ऐसा सेतु तोडने का निर्णय लिया । इसके विरुद्ध याचिका प्रविष्ट कर मैंने न्यायालय को पटाया कि सेतुसमुद्रम् प्रकल्प किस प्रकार से व्ययकारी (खर्चीला) है । इसलिए न्यायालय ने यह प्रकल्प रोका ।
२. केरल के चिदंबरम् गांव में १ सहस्र ५०० वर्ष पूर्वका नटराज मंदिर सरकार द्वारा नियंत्रण में लिया गया था । वहां पूजा करनेवाले पुजारियों को मंदिर से हटा दिया गया था । इसके विरुद्ध मैंने न्यायालयीन लडाई की एवं मंदिर का प्रशासन वापस न्यासियोंको देने के लिए बाध्य किया । पूजा करना भक्त का अधिकार है । धर्मनिरपेक्ष सरकार मंदिर कैसे चला सकती है ? भविष्य में कोई सरकार मंदिर का व्यवस्थापन हाथ में लेने का साहस नहीं करेगी ।
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