यज्ञध्वज नमस्तुभ्यं धर्मध्वज नमोऽस्तु ते ।
तालध्वज नमस्तेऽस्तु नमस्ते गरुडध्वज ॥
- वामनपुराण, अध्याय ८७, श्लोक ४
तालध्वज नमस्तेऽस्तु नमस्ते गरुडध्वज ॥
- वामनपुराण, अध्याय ८७, श्लोक ४
अर्थ : हे यज्ञध्वज, हे धर्मध्वज तुम्हें प्रणाम । हे तालध्वज, हे गरुडध्वज, तुम्हें प्रणाम ।विश्वकल्याणके लिए सात्त्विक लोगोंद्वारा चलाया जानेवाला भावी ‘हिन्दू राष्ट्र’ धर्माधिष्ठित होगा । अतः ‘हिन्दू राष्ट्र’ में राष्ट्रध्वज नहीं, अपितु धर्मध्वज होगा । इसका कारण यह है कि राष्ट्रध्वजकी अपेक्षा धर्मध्वज महत्त्वका है । हिन्दू राष्ट्र, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष प्राप्त करना इन तत्त्वोंपर आधारित होगा । इसके लिए धर्मध्वज प्रेरणा देगा ।
इसके विपरीत राष्ट्रध्वजके कारण केवल राष्ट्राभिमान जागृत होनेकी संभावना है । धर्मध्वज धर्माधिष्ठित राज्यकी प्रेरणा देता है । इसलिए धर्मध्वजसे प्रार्थना करते हैं; परंतु राष्ट्रध्वजसे कोई प्रार्थना नहीं करता । अतः ‘हिन्दू राष्ट्र’ में धर्मध्वज ही राष्ट्रध्वज होगा । इस लेखमें धर्मध्वजकी जानकारी दी गई है जिससे अपना धर्मध्वजके प्रति भाव उत्पन्न होगा ।
हिन्दू धर्ममें ध्वजके दो प्रकार दिखाई देते हैं । शास्त्रके अनुसार एक छोरवाले ध्वजको पताका कहते हैं, जो सफलताका प्रतीक होता है । युद्धकालावधिमें उसका उपयोग होता है । युद्धके रथपर एक छोरवाला ध्वज लगाया जाता है । एक छोरवाले भगवे ध्वजको देखकर शक्ति प्रतीत होती है । दो छोरवाले ध्वजको धर्मध्वज कहते हैं । यह ध्वज हिन्दू धर्मके प्रतीकके रूपमें धार्मिक उत्सवमें मंदिरोंपर लगाया जाता है । दो छोरवाले भगवे ध्वजकी ओर देखकर भाव एवं आनंद प्रतीत होता है । इसीलिए ‘हिन्दू राष्ट्र’के धर्मध्वजके रूपमें दो छोरवाला ध्वज सुयोग्य है ।
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