रक्षा क्षेत्र में विदेशों पर निर्भरता कम करना और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना सामरिक और आर्थिक दोनों कारणों से आज यह एक विकल्प के बजाय एक आवश्यकता है। सरकार ने अतीत में हमारे सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयुद्ध निर्माणियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के रूप में उत्पादन क्षमताओं का निर्माण किया। हालांकि, विभिन्न रक्षा उपक्रमों के उत्पादन की क्षमताओं को विकसित करने के लिए भारत में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने पर जोर देने की आवश्यकता है। हमारे प्रधानमंत्री ने देश में विभिन्न वस्तुओं के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए 'मेक इन इंडिया' जैसी एक महत्वपूर्ण पहल की है। अन्य वस्तुओं की अपेक्षा रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन की अधिक जरूरत है, क्योंकि इनसे न केवल बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा चिन्ताओं को भी दूर किया जा सकेगा।
रक्षा क्षेत्र में सरकार ही एक मात्र उपभोक्ता है। अत: 'मेक इन इंडिया' हमारी खरीद नीति द्वारा संचालित होगी। सरकार की घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने की नीति, रक्षा खरीद नीति में अच्छी तरह परिलक्षित होती है। जहां 'बाई इंडियन' तथा 'बाई एंड मेक इंडियन' श्रेणियों का बाई ग्लोबल से पहले स्थान आता है। आने वाले समय में आयात दुर्लभ से दुर्लभतम होता जाएगा और जरूरी व्यवस्था के निर्माण और विकास के लिए सर्वप्रथम अवसर भारतीय उद्योग को प्राप्त होगा। भले ही भारतीय कंपनियों की वर्तमान में प्रौद्योगिकी के मामले में पर्याप्त क्षमता न हो, उन्हें विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की व्यवस्था और गठबंधन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
यदि हम नई सरकार के सत्ता में आने के बाद, पिछले कुछ महीनों में, रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) द्वारा स्वीकृत जरूरत की स्वीकृति (एओएन) की प्रोफाइल पर नजर डालें तो 'बाई इंडियन' तथा 'बाई एंड मेक इंडियन' श्रेणियों के तहत 65 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा के प्रस्ताव आए हैं। भविष्य में घरेलू उद्योगों से रक्षा खरीद प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी। खरीद प्रक्रिया को अधिक कुशल, समयबद्ध और उम्मीद के मुताबिक बनाया जाएगा ताकि उद्योग, हमारे सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अग्रिम में अनुसंधान एवं विकास तथा निवेश योजना बना सकें।
अब तक रक्षा क्षेत्र में घरेलू उद्योग के प्रवेश के लिए लाइसेंस और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रतिबंध आदि को लेकर कई बाधाएं थी। पिछले 6 महीनों में सरकार ने रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में निवेश की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए कई नीतियों को उदार बनाया है। सबसे महत्वपूर्ण रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए एफडीआई नीति को उदार बनाया गया है। अब सरकारी माध्यम से एफआईपीबी की मंजूरी के साथ 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेश निवेश को मंजूरी दी गई है। जहां कहीं भी आधुनिक और नवीनतम प्रौद्योगिकी मिलती है वहां सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति की मंजूरी के साथ मामले दर मामले में 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को भी मंजूरी दी गई है। रक्षा खरीद नीति में पहले से मौजूद विदेशी संस्थागत निवेश और बहुमत हिस्सेदारी वाली 'एकल भारतीय शेयर धारक' संबंधी प्रतिबंध भी हटा लिए गए हैं।
हालांकि, आईडीआर कानून के तहत औद्योगिक लाइसेंस प्राप्त करने के बाद वर्ष 2001 से निजी क्षेत्र के उद्योग को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में अनुमति दी गई थी लेकिन औद्योगिक लाइसेंस प्राप्त करना एक बहुत जटिल प्रक्रिया थी जो कि उप-असेंबली, उप-प्रणाली, घटक और हिस्से-पुर्जें बनाने वाले व्यावसायियों के लिए, खासकर लघु और मध्यम उद्योगों के लिए, एक प्रमुख अड़चन थी। सरकार ने लाइसेंस नीति को उदार बनाया है और अब घटकों, हिस्से-पुर्जों, कच्चा माल, परीक्षण उपकरण, उत्पादन मशीनरी, कास्टिंग तथा फोर्जिंग आदि को लाइसेंस के दायरे से बाहर रखा गया है। जो कंपनियां इस तरह की वस्तुओं का उत्पादन करना चाहती है अब उन्हें लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी और न ही उन पर 49 प्रतिशत एफडीआई की सीमा का प्रतिबंध होगा। विभिन्न श्रेणी के उद्योगों के पालन के लिए एक व्यापक सुरक्षा मैन्युअल तैयार किया गया है ताकि कंपनियों की इस तक आसान पहुंच हो और तदनुसार इसका पालन किया जा सके। औद्योगिक लाइसेंस की प्रारंभिक वैधता 2 से बढ़ाकर 3 वर्ष कर दी गई है।
पहली बार, एक रक्षा निर्यात नीति तैयार की गई है, जिसे सार्वजनिक डोमेन में रखा गया है। इस नीति में रक्षा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा किए जाने वाले विशिष्ट उपायों की रूप रेखा दी गई। इस नीति में घरेलू उद्योग को दीर्घकाल में अधिक टिकाऊ बनाने का उद्देश्य निहित है क्योंकि यह उद्योग विशुद्ध रूप से घरेलू मांग पर निर्भर नहीं रह सकता है। सैन्य भंडार के निर्यात के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) जारी करने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को अंतिम रूप दिया गया है और इसे भी सार्वजनिक डोमेन में डाल दिया गया है। सरकारी अधिकारियों द्वारा अधिकांश रक्षा उत्पादों, विशेष रूप से हिस्से-पुर्जों, घटकों, उप-प्रणालियों और उप-एसेंबलियों पर अंतिम उपयोगकर्ता प्रमाण पत्र (ईयूसी) के हस्ताक्षर और मुहर लगाने की आवश्यकता की बाध्यता समाप्त कर दी गई है। इससे काफी हद तक घरेलू उद्योग द्वारा निर्यात में आसानी होगी। सैन्य भंडार निर्यात के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र के आवेदन प्राप्त करने हेतू वेब आधारित एक ऑनलाइन व्यवस्था विकसित की गई है और उसे लागू किया गया है।
रक्षा क्षेत्र में घरेलू और विदेशी दोनों निवेशकों के लिए एक बड़ा अवसर उपलब्ध है। हमारा देश दुनिया का तीसरा सबसे बड़े सैन्य बल वाला देश है जिसके लिए वार्षिक बजट में करीब 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रावधान है, जिसका 40 प्रतिशत पूंजी अधिग्रहण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अगले 7-8 वर्षों में हम, 'मेक इन इंडिया' की वर्तमान नीति के तहत अपने सैन्य बलों के आधुनिकीकरण के लिए 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने जा रहे हैं। अब, राष्ट्र के साथ-साथ व्यवसाय के लाभ, दोनों के लिए इस अवसर का सदुपयोग करने की जिम्मेदारी उद्योग पर है। इसके अलावा अगले 7-8 वर्षों में 25 हजार करोड़ रूपए से ज्यादा का कारोबार होना है।
एक तरफ जहां सरकार निर्यात, लाइसेंसिंग, एफडीआई सहित निवेश और खरीद के लिए नीति में जरूरी बदलाव कर रही है वहीं उद्योग को भी जरूरी निवेश और प्रौद्योगिकी के मामले में उन्नयन करने की चुनौती को स्वीकार करने के लिए सामने आना चाहिए। रक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जो नवाचार से संचालित होता है और जिसमें भारी निवेश और प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है। लिहाजा उद्योग को भी अस्थायी लाभ के बजाय लंबी अवधि के लिए सोचने की मानसिकता बनानी होगी। हमें अनुसंधान विकास तथा नवीनतम विनिर्माण क्षमताओं पर ज्यादा ध्यान देना होगा। सरकार, घरेलू उद्योग हेतु एक ऐसी पारिस्थितिकी प्रणाली विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है जिससे वह सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में बराबर के स्तर पर व्यावसायिक उन्नति कर सके।
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