एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान.. अगले तीन सालों के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी रणनीति बना ली है. संघ की यह रणनीति हिंदुओं के बीच जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए है. इसके साथ ही संघ ने अपनी रणनीति में नॉर्थ ईस्ट को केंद्र में रखा है.
संघ ने रणनीति में दक्षिण भारत में अपने विस्तार और क्षेत्रीय भाषाओं को तरजीह देने के साथ विदेशी भाषाओं के विरोध को भी महत्ता दी है. नागपुर में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में ये सभी मुद्दे चर्चा के केंद्र में रहे.
इस सभा में संघ के 1,400 प्रतिनिधियों ने भगवा एजेंडे को आगे ले जाने मुद्दे पर चर्चा की. रविवार को खत्म हुई तीन दिवसीय बैठक में संघ ने दर्जनों राज्यों में कराए जातिगत सर्वे को भी सामने रखा.
आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने कार्यकर्ताओं से जातिगत भेदभाव और इसको रोकने के उपायों पर प्रजेंटेशन बनाने को कहा है. कार्यकर्ताओं से आने वाले महीनों में सभी राज्यों में जनजागरण समितियों के जरिए अभियान चलाने को कहा गया है.
संघ के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'पिछले महीने संघ ने एक बैठक बुलाकर सभी संतों और मठों के प्रमुखों को छुआछूत और जातिगत भेदभाव रोकने को कहा है.' इसके अलावा आरएसएस ने उत्तराखंड के आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के लिए अभियान चलाया था.
दूसरी ओर एक सदस्य ने कहा कि आरएसएस नेताओं को बुद्धिस्ट दीक्षा भूमि पर सिर नवाते देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म के कार्यक्रमों में शिरकत करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है. आरएसएस के जनरल सेक्रेटरी सुरेश 'भैयाजी' जोशी ने कहा, 'यह दिखाता है कि समुदाय के लोगों में एक होने की भावना बढ़ी है.'
गौरतलब है कि इस बार आरएसएस की प्रतिनिधि सभा का प्रतीक चिन्ह नागालैंड की रानी गायदीनलियू थी, रानी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी और ईसाई धर्म में आदिवासियों के कन्वर्जन का विरोध किया. जाहिर यह नॉर्थ ईस्ट के बारे में आरएसएस के एजेंडे की प्राथमिकता को दर्शाता है.
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