केंद्र सरकार ने उस याचिका का विरोध करने का फैसला लिया है, जिसमें मांग की गई है कि हिंदू धर्म छोड़कर ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों का एससी का दर्जा बरकरार रखा जाए। सरकार का तर्क है कि जातिवाद और छुआछूत सिर्फ हिंदू धर्म में ही हैं और शेड्यूल्ड कास्ट्स नाम से अलग कैटिगरी इसी वजह से बनानी पड़ी है।
SC स्टेटस अभी यह सिर्फ हिंदुओं, सिखों और बौद्धों के लिए सीमित है। एक याचिका में मांग की गई है कि इस दर्जे को धर्म आधारित न रखते हुए उन हिंदू 'अछूतों' को भी दिया जाए, जो इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लेते हैं।
इस मांग के विरोध में बीजेपी सरकार का कहना है कि 'छुआछूत' हिन्दू धर्म का एक बुरा पहलू थी और इसने प्रभावित जातियों को इज्जत, आत्म सम्मान और अन्य मानवीय अधिकारों से वंचित रखा। इस कुप्रथा को सिर्फ हिंदू धर्म से जोड़ते हुए सरकार कहती है कि 'सामाजिक पिछड़ापन' धर्मांतरण करने वालों को उन दलितों जैसी स्थिति में नहीं लाता, जो 'छुआछूत' की वजह से पिछड़ेपन के शिकार हुए हैं।
तर्क यह दिया गया है कि संविधान विधायिका में दलितों और आदिवासियों को आरक्षण इसलिए देता है, ताकि उनके साथ सदियों से हुए सामाजिक अन्याय की भरपाई की जा सके। और अगर इस बेनिफिट को धर्मांतरण करने वालों भी दिया जाने लगा, तो यह एससी और एसटी से संबंध रखने वाले लोगों के हितों पर कब्जा करने जैसा होगा।
बीजेपी सरकार ने इस मसले पर साफ स्टैंड ले लिया है, लेकिन यूपीए सरकार ने 2005 में इस मुद्दे की स्टडी के लिए नैशनल कमिशन बनाकर थोड़ा और टाइम लेने की रणनीति अपनाई थी। इसके बाद उसने 2011 में 'जाति और आर्थिक आधार पर जनगणना' के डेटा का इंतजार करने का फैसला किया था।
सामाजिक न्याय मंत्रालय ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को विस्तृत डीटेल देते हुए कहा है कि धर्मांतरण करने वालों को एससी का दर्जा देने की मांग करने वाली याचिका का विरोध किया जाए।
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