पीडित व्यक्ति के द्वारा पूछे जा सकने वाले कुछ प्रमुख प्रश्न :
- क्या नाबालिग इस कानून के अंतर्गत राहत का हकदार है?
हां, कानून के अंतर्गत बच्चे की परिभाषा के अनुसार नाबालिग भी 'घरेलू संबंध' की परिभाषा की परिधि में आते हैं। पीडब्ल्यूडीवीए की धारा 2 (बी) के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति, जोकि 18 वर्ष से कम आयु का है, बच्चा परिभाषित होता है। इसमें कोई भी गोद लिया हुआ बच्चा, सौतेला बच्चा या पाला-पोषा हुआ बच्चा है।
- क्या एक नाबालिग लड़का इस कानून के अंतर्गत लाभ का आवेदन कर सकता है?
मां अपने नाबालिग बच्चे (चाहे लड़का हो या लड़की) की ओर से आवेदन कर सकती है। ऐसे मामलों में जहां मां न्यायालय से अपने लिए राहत मांगती है, पीडब्ल्यूडीवीए के अंतर्गत बच्चों को भी सह-आवेदक के रूप में शामिल किया जा सकता है। न्यायालय उचित समय पर अभिभावक या बच्चे का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है।
- 'घरेलू संबंध (धारा-2एफ) की परिभाषा में इस्तेमाल अभिव्यक्ति' विवाह की तरह का संबंध का अर्थ क्या है?
विवाह की तरह के संबंध का तात्पर्य वैसे संबंधों से है जिसमें दो व्यक्तियों के बीच किसी कानून के अंतर्गत विवाह की पवित्रता भाव से विवाह नहीं हुआ हो, फिर भी दोनों पक्ष दुनिया की निगाह में एक दूसरे को दंपत्ति दिखाते हैं और उनके संबंध में स्थिरता और निरंतरता है। ऐसे संबंध को समान कानून विवाह के रूप में भी जाना जाता है।
- ऐसे संबंध के साक्ष्य होंगे : एक समान नाम का उपयोग, समान राशन कार्ड, एक पता आदि।
- दक्षिण अफ्रीका के इथेल रोबिन्स वुमेन्स लिगल सेंटर ट्रस्ट बनाम रिचर्ड गोर्डन वोल्कास आदि (केस नम्बर 7178/03, दक्षिण अफ्रीका उच्च न्यायालय, केप प्रांत) मामले को देखना लाभकारी होगा। इस मामले में यह तय करने के लिए विचार किया गया कि क्या कोई संबंध विवाह की तरह का संबंध है। निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए निम्न तथ्यों पर गौर किया गया :
- साझी गृहस्थी के प्रति पक्षों की प्रतिबद्धता
- महत्वपूर्ण अवधि तक साथ-साथ रहना
- पक्षों के बीच वित्तीय तथा अन्य निर्भरता का अस्तित्व। इसमें गृहस्थी के संदर्भ में महत्वपूर्ण पारस्परिक वित्तीय प्रबंध शामिल है।
- संबंध से बच्चों का अस्तित्व
- गृहस्थी तथा बच्चों की देख-भाल में दोनों पक्षों की भूमिका
- विवाह की तरह संबंधों पर भारतीय मुकदमें-
बद्रीप्रसाद एआईआर 1978एससी1557 मामले में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि पति-पत्नी की तरह लम्बी अवधि तक एक साथ रहने से विवाह के पक्ष में मजबूत धारणा बनती है।
- सुमित्रा देवी (1985) 1 एससीसी 637 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रासंगिक तथ्य जैसे- कितने समय से दोनों पक्ष साथ-साथ रह रहे हैं, क्या समाज उन्हें पति और पत्नी के रूप में मान्यता देता है आदि बातों पर यह तय करते समय विचार करना आवश्यक है कि संबंध विवाह की तरह का लगता है।
- विवाह की तरह के संबंध में निम्न श्रेणी की महिलाएं आती हैं –
- महिलाएं जिनका विवाह अवैध है या कानून के तहत अवैध हो सकता है के मामले में विवाह की कानूनी अवैधता के अतिरिक्त वह बाकी सभी मानकों को पूरा करती हैं।
- वैसी महिलाएं जो विवाह किए बिना दाम्पत्य संबंध में साझी गृहस्थी में रह रही हैं।
- समान कानून विवाह – जब दंपति वर्षों से साथ-साथ रह रहे हैं और बाहर की दुनिया को पति-पत्नी बता चुके हैं।
- क्या अभिव्यक्ति 'विवाह की तरह के संबंध' विवाह के बराबर है?
कानून सभी महिलाओं, चाहे वह बहन हो, मां हो, पत्नी हो या साझी गृहस्थी में सहभागी के रूप में साथ-साथ रह रहे हों, की सुरक्षा का प्रावधान करता है। सुरक्षा प्रदान करने तक कानून विवाहित और अविवाहित का फर्क नहीं करता, लेकिन कानून कहीं भी यह नहीं कहता कि एक अवैध विवाह वैध है। कानून हिंसा से सुरक्षा देता है, साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार प्रदान करता है और बच्चों की अल्पकालिक संरक्षा प्रदान करता है। लेकिन पुरूष की संपत्ति के उत्तराधिकार या बच्चे की वैधता के लिए देश के सामान्य कानून और पक्षों की वैयक्तिक कानूनों पर भरोसा करना होगा।
प्रतिवादी द्वारा पूछे जा सकने वाले कुछ प्रमुख प्रश्न :
- महिला किसके विरूद्ध शिकायत कर सकती है?
महिला हिंसा का अपराध (धारा-2(क्यू) किसी भी वयस्क पुरूष के विरूद्ध शिकायत दर्ज करा सकती है। ऐसे मामलों में जब महिला विवाहित है और विवाह की तरह संबंध में रह रही है, तो वह हिंसा, अपराध करने वाले पति/पुरूष के पुरूष या महिला संबंधियों के विरूद्ध भी शिकायत दर्ज करा सकती है। पीडब्ल्यूडीवीए में भारतीय दंड संहिता की धारा-498ए के अंतर्गत धारा-2(क्यू) शामिल किया गया। इससे क्रूरता के लिए पति के संबंधियों, चाहे वह पुरूष या महिला हो, के खिलाफ मुकदमा चलाना संभव है। ऐसे उदाहरणों में सास, ससुर, ननद आदि आते हैं।
- धारा 2 (क्यू) के तहत संबंधियों की परिभाषा में कौन आते हैं?
पीडब्ल्यूडीवीए में संबंधी शब्द परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए इसका सामान्य अर्थ निकालना होगा। संबंधियों के उदाहरण पिता, माता, बहन, चाचा, ताऊ और प्रतिवादी का भाई अनुच्छेद 2(क्यू) में संबंधी के रूप में शामिल किये जा सकते हैं। अनुच्छेद 498ए संबंधी शब्द का इस्तेमाल करता है, जोकि परिभाषित नहीं है। इस तरह संबंधी शब्द का सामान्य अर्थ में महिला संबंधी भी शामिल होंगी।
- क्या एक पत्नी अपने पति के महिला संबंधियों जैसे सास, ननद के विरूद्ध शिकायत दर्ज करा सकती है?
हां, पति के महिला संबंधियों के विरूद्ध आदेश जारी किये जा सकते हैं। लेकिन अनुच्छेद 19(1) के प्रावधान के अनुसार महिला संबंधी के विरूद्ध बेदखली की छूट नहीं दी जा सकती। अनुच्छेद 19(1) की राय में अनुच्छेद 19 (1 बी) के तहत प्रतिवादी (महिला) को साझी गृहस्थी से हटाने का आदेश पारित करने का निर्देश नहीं देता।
पीडि़त महिला अपने पति के पुरूष संबंधियों या अन्य पुरूष साथियों के विरूद्ध सुरक्षा प्राप्त कर सकती है। भरण-पोषण भत्ता (मौद्रिक सहायता के लिए आदेशों के तहत) वही व्यक्ति प्राप्त कर सकते हैं, जो अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के दायरे में आते हैं।
- क्या एक सास अपनी बहू के विरूद्ध राहत के लिए आवेदन कर सकती है?
नहीं, सांस बहू के विरूद्ध आवेदन नहीं कर सकती (अनुच्छेद 2 (क्यू), लेकिन पुत्र और बहू के हाथों हिंसा झेल रही सास अपने बेटे और बहू के विरूद्ध, बेटे द्वारा किये गये हिंसा अपराध में बढ़ावा देने के लिए, आवेदन दायर कर सकती है। लेकिन सास साझी गृहस्थी से बहू की बेदखली की मांग नहीं कर सकती।
घरेलू दुर्घटना रिपोर्ट
- घरेलू दुर्घटना रिपोर्ट (डीआईआर) क्या है?
पीडब्ल्यूडीवीए के फार्म 1 में डीआईआर का प्रारूप दिया गया है। पीडित महिला इसका इस्तेमाल संरक्षा अधिकारी और सेवा प्रदाता के समक्ष घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराने के लिए कर सकती है। यह इस तथ्य का रिकॉर्ड होता है कि हिंसा की घटना की रिपोर्ट की गई है, यह एनसीआर (गैर दंडनीय अपराध रिपोर्ट) की तरह है। इसे संरक्षा अधिकारी या पंजीकृत सेवा प्रदाता द्वारा करना पड़ता है और हस्ताक्षर करना पड़ता है। यह सार्वजनिक दस्तावेज है।
- डीआईआर कैसे रिकॉर्ड किया जाता है ?
डीआईआर को महिला के सच्चे बयान को विश्वास रूप में रिकॉर्ड किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि सभी तरह की शिकायतें पीडब्ल्यूडीवीए के दायरे में पक्षपात रहित रूप में दर्ज की जानी चाहिए।
अगर कोई महिला अपनी पीड़ा नहीं बता पाती, तब संरक्षा अधिकारी उसे बाद में डीआईआर भरने के लिए बुला सकते हैं। संरक्षा अधिकारी महिला के आगमन संबंधी ब्योरों का दैनिक डायरी रखेंगे।
- डीआईआर रिकॉर्ड होने के बाद क्या किया जाता है?
संरक्षा अधिकारी डीआईआर को मजिस्ट्रेट को अग्रसारित करते हैं। डीआईआर की एक प्रति क्षेत्राधिकार में आने वाले थाने के प्रभारी को अग्रसारित की जाएगी।
यदि महिला चाहे तो सेवा प्रदाता डीआईआर को संरक्षा अधिकारी तथा मजिस्ट्रेट को भेज सकता है। ऐसे मामलों में न्यायालय में दाखिल आवेदन के साथ डीआईआर संलग्न होना चाहिए।
- डीआईआर प्राप्ति पर मजिस्ट्रेट को क्या करना चाहिए ?
मजिस्ट्रेट रिकॉर्ड रखने के लिए डीआईआर सुरक्षित रखेंगे। पीडित महिला द्वारा दाखिल किसी मामले में इसको भेजा जा सकता है। इसका इस्तेमाल वैसे मामलों में भी हो सकता है, जो मामला संरक्षा अधिकारी की सहायता से दायर हो और डीआईआर बाद में दिया जाए।
- क्या पीडित महिला या उसके वकील द्वारा डीआईआर भरा जा सकता है?
नहीं, संरक्षा अधिकारी या पंजीकृत सेवा प्रदाता फार्म-1 में डीआईआर भरेंगे और इस पर दोनों में से एक का हस्ताक्षर होगा। चूंकि डीआईआर सार्वजनिक दस्तावेज है, इसलिए इसे कोई सरकारी अधिकारी ही भरेगा। अनुच्छेद 30 पीडब्ल्यूडीवीए के अंतर्गत अपने कार्यों के संपादन में सभी संरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं को लोक सेवक मानता है।
- क्या पीडित महिला डीआईआर के बिना आवेदन भर सकती है?
हां, पीडित महिला राहत के लिए डीआईआर भरे बिना आवेदन दे सकती है।
- जहां महिला राहत के लिए आवेदन करती है, वहां मजिस्ट्रेट को केस दर्ज हो जाने के बाद डीआईआर की मांग करनी चाहिए?
न्यायालय में आवेदन देते समय डीआईआर की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि डीआईआर का चरण और उद्देश्य (हिंसा, घटना की रिकार्डिंग) अस्तित्व में नहीं रहता। एक बार न्यायालय में आवेदन दाखिल किये जाने के बाद मजिस्ट्रेट संरक्षा अधिकारी को घर का दौरा करने का आदेश दे सकता है या नियम 10 (1) के अंतर्गत परिस्थिति के अनुसार रिपोर्ट का आदेश दे सकता है।
- क्या संरक्षा अधिकारी डीआईआर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए घर जा सकता है?
नहीं, संरक्षा अधिकारी न्यायालय के आदेश के बिना घर का दौरा नहीं कर सकता।
साभार : लायर्स क्लेक्टिव वुमेन्स राइट्स इनिशिएटिव
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