आदरणीय सभापति जी,
कई वर्षों से, किसानों की आत्महत्या, समग्र देश के लिए चिंता का विषय रहा है। समय समय पर, हर सरकार ने, उनसे जो भी संभव हुआ, करती रही है। कल की घटना के कारण पूरे देश में जो पीड़ा है, उसकी अभिव्यक्ति सदन के भी सभी माननीय सदस्यों ने की है। मैं भी इस पीड़ा में सहभागी होता हूँ। यह हम सब का संकल्प रहे, हम सब मिल कर के, इस समस्या का समाधान कैसे ढूंढें। समस्या बहुत पुरानी है, समस्या बड़ी व्यापक है, और उसे उस रूप में लेना पड़ेगा।
जो भी अच्छे सुझाव होंगे उसे ले करके चलने के लिए सरकार तैयार है। किसान की ज़िंदगी से बड़ी कोई चीज़ नहीं होती। इंसान की ज़िंदगी से बड़ी कोई चीज़ नहीं होती। और इसलिए, राजनाथ जी ने सरकार की तरफ से जो जानकारी देनी थी वह आपको दी है, लेकिन मैं, इस सदन की पीड़ा के साथ अपने आप को जोड़ते हुए..., हम सब, दल कोई भी हो, देश बहुत बड़ा होता है, समस्या पुरानी है, गहरी है, हम सबको सोचना होगा कि हम कहाँ गलत रहे, वो कौनसे गलत रास्ते पर चल पड़े, वो कौनसी कमियां रही, पहले क्या कमियां रही, पिछले दस महीनों में क्या कमियां रही, यह सबका दायित्व है।
लेकिन किसानों की इस समस्या के समाधान का रास्ता हमको खोजना है, और मैं इस विषय पर खुले मन से, जो भी सुझाव आये, आप ज़रूर बताइये, हम कोई न कोई रास्ता निकालने का प्रयास करेंगे। किसान को असहाय नहीं छोड़ सकते। हमने उसके साथ, उसके दुःख में सहभागी होना है, उसके भविष्य के लिए भी सहभागी होना है। और उस संकल्प... आज की चर्चा में वो संकल्प उभर कर आये, सामूहिक संकल्प उभर कर आये, कि हम सब मिलकर, अब हमारे किसानों को हम न मरने दें, मैं इतनी ही प्रार्थना इस सदन को करता हूँ।"
0 comments :
Post a Comment