प्रधानमंत्री द्वारा पीटीआई को दिए गए इंटरव्यू का मूलपाठ हिंदी में इस प्रकार है:
प्रश्न नंबर 1 : सर, प्रधानमंत्री के रूप में आपने एक साल पूर किया है। कृपया क्या अपने अनुभवों को बता सकते हैं?
उत्तर : जब मैंने पद संभाला, लोकसेवा पूरी तरह हतोत्साहित थी और निर्णय लेने से डरती थी। बाहर से संविधानेतर प्राधिकारियों और भीतर से मंत्रियों के समूहों के कारण कैबिनेट व्यवस्था भी जीर्णावस्था में थी। राज्यों और केन्द्र के बीच गहरी खाई और गहरा अविश्वास था। विदेशी और भारतीय दोनों भारतीय शासन से हताश थे। उस निराशा के वातावरण को बदलना बहुत बड़ी चुनौती थी और हालात को सुधारने तथा विश्वास एवं उम्मीद बहाली करने में मैंने कई कठिनाइयों का सामना किया।
प्रश्न संख्या 2 : प्रधानमंत्री बनने के तत्काल बाद, आपने कहा था कि चूंकि यहां नये हैं और दिल्ली को समझने का प्रयास कर रहे हैं । क्या आपने दिल्ली को समझ लिया?
उत्तर : जब मैं दिल्ली की बात करता हूं तब मेरा आशय केंद्र सरकार से है। मेरा अनुभव यह है कि दिल्ली उसी तरह से चलती है जो रास्ता नेतृत्व तय करता है। हमारी टीम दिल्ली में कामकाज की संस्कृति में बदलाव लाने की दिशा में काम कर रही है ताकि सरकार को और सक्रिय तथा पेशेवर बनाया जा सके। जब मैंने पदभार संभाला, मंैने पाया कि दिल्ली में सत्ता के गलियारे विभिन्न तरह के एजेंटों से भरे हुए थे। सत्ता के गलियारों को साफ करने का कार्य महत्वपूर्ण था ताकि सरकार के तंत्र खुद बेहतर बन सके।सुधार और साफ करने की प्रक्रिया में थोड़ा समय लगा लेकिन इससे स्वच्छ एवं निष्पक्ष शासन के संदर्भ में दीर्घकालीन लाभ होगा।
प्रश्न संख्या 3 : और आपने क्या समझा ?
उत्तर : एक बात मंै समझने में विफल रहा कि कैसे कुछ दलों की राज्य सरकारें भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की मांग करती हैं लेकिन जब वे दल दिल्ली में बैठते हैं तब संशोधनों का विरोध करते हैं।
प्रश्न संख्या 4 : पिछले एक वर्ष पर नजर डालें तब क्या आप सोचते हैं कि कुछ ऐसी चीजें जो आपने कीं, उसे दूसरी तरह से कर सकते थे या किया जाना चाहिए था ?
उत्तर : ‘‘मेरे पास दो विकल्प थे।एक विकल्प था सरकारी मशीनरी को लामबंद करके, व्यवस्था में आई कई त्रुटियों और खराबियों को दूर करने के लिए प्रक्रियात्मक रूप से :मथाडिकली: काम किया जाए जिससे कि देश को लंबे समय तक स्वच्छ, कुशल और निष्पक्ष शासन के रूप में लाभ दिया जा सके।’’ ‘‘दूसरा विकल्प यह था कि जनादेश का उपयोग करते हुए नयी लोकलुभावन योजनाएं घोषित की जाएं और जनता को बेवकूफ बनाने के लिए मीडिया के जरिए ऐसी घोषणाओं की बमबारी कर दी जाए।यह रास्ता आसान है और लोग इसके आदी हैं।’’
उत्तर : जीएसटी और प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण विधेयक देश के लिए फायदेमंद हैं।दोनों विधेयकों के मुख्य सार को सभी दलों द्वारा राजनीतिक निहिताथो’ से उपर उठकर समर्थन करना चाहिए। देश के दीर्घकालिक हित सर्वोपरि रहने चाहिएं।तथ्य यह है कि राज्य जीएसटी के लिए सहमत हैं और यह हमारी संघीय व्यवस्था की परिपक्वता को दर्शाता है और जीएसटी विधेयक को लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है । कुछ ही समय की बात है जब ये दोनों विधेयक पारित हो जायेंगे ।
प्रश्न संख्या 7 : आप अधिक से अधिक निवेश लाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं । अगर सुधार उपाय तेजी से आगे नहीं बढ़ाए जाते, तो विदेशी निवेशकों को किस तरह का संदेश जायेगा ?
उत्तर : दिल्ली के बारे में ‘सुधार’ के संदर्भ में अनोखी बात यह है कि यह केवल संसद में कानून पारित करने से संबंधित है। वास्तव में सबसे महत्वपूर्ण सुधार जिनकी जरूरत है, बिना नये कानूनों के, सरकार के विभिन्न स्तरों पर, कामकाज और प्रक्रिया के संदर्भ में हैं। हमने कई महत्वपूर्ण सुधारों को आगे बढ़ाया है।इनमें डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त बनाना, रसोई गैस सब्सिडी को प्रत्यक्ष अंतरण से जोड़ना, एफडीआई सीमा को बढ़ाना, रेलवे और कई अन्य क्षेत्रों को नयी उर्जा प्रदान करना शामिल है। सचाई यह है कि सुधार वास्तव में काफी तेजी से आगे बढ़ाये जा रहे हैं और वास्तव में इसके परिणामस्वरूप पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में अप्रैल 2014 और फरवरी 2015 के बीच एफडीआई में 39 प्रतिशत वृद्धि देखी गई।
प्रश्न संख्या 8 : भविष्य के लिए आप किन सुधार उपायों की योजना बना रहे हैं ?
उत्तर :जो कदम हम उठा चुके हैं, उनकी सफलता और अपने पहले वर्ष में हमारे कार्यो पर देशभर में लोगों से मिली प्रतिक्रिया सकारात्मक है और इससे हम और काम करने को प्रोत्साहित हुए हैं।हमारा ध्यान पी2जी2 पर होगा।इसका आशय है सक्रिय, लोकोन्मुखी, सुशासन से परिपूर्ण सुधार।एक अन्य आयाम जिस पर हमारा जोर होगा और जिसे हम मजबूत बनाना चाहते हैं, वह राज्य और केंद्र को एक टीम के रूप में बनाना है और सुधार को प्रभावी बनाने के लिए मिलकर काम करना है।
प्रश्न संख्या 9: आप पहले ही कई क्षेत्रों को एफडीआई के लिए खोल चुके हैं। आने वाले समय में आप किन अन्य क्षेत्रों को एफडीआई के लिए खोलने पर विचार कर सकते हैं ?
उत्तर: जो कदम उठाये जा चुके हैं, उससे भारत निवेश के लिए और आकषर्क स्थल बना है और विश्वास भी बढ़ा है।जहां भी उच्च रोजगार क्षमता होगी और जहां भी मजबूत स्थानीय प्रतिभा होगी मसलन अनुसंधान एवं विकास में, वे क्षेत्र एफडीआई के लिए केंद्रीय क्षेत्र होंगे। हमने राष्ट्रीय आधारभूत ढांचा निवेश कोष बनाया है। यह महत्वपूर्ण कदम होगा जो सभी आधारभूत संरचना क्षेत्रों में विदेशी निवेश के प्रवाह को बढ़ायेगा, वह भी बिना क्षेत्र दर क्षेत्र पहल के।
प्रश्न संख्या 10: आर्थिक नीति के संबंध में क्या आरबीआई की सोच वित्त मंत्रालय से मेल खाती है? मैं यह प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि कई बार आरबीआई गवर्नर के बयान वित्त मंत्रालय के साथ तालमेल नहीं होने का संकेत देते हैं।
उत्तर: मैं हैरान हूं कि पीटीआई जैसी महत्वपूर्ण और विश्वसनीय मीडिया एजेंसी विभिन्न संदर्भों में दिये गये बयानों के आधार पर गलत अर्थ निकाल रही है। आरबीआई की अपनी कामकाजी स्वायत्तता है जिसका सरकार और वित्त मंत्रालय हमेशा सम्मान करते हैं और संरक्षण करते हैं।’’
प्रश्न संख्या 11: आप इस वित्त वर्ष के विकास के आंकड़ों का क्या लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं?
उत्तर: पिछले साल का अनुभव और 1.25 अरब भारतीयों का उत्साह और प्रोत्साहन मुझे विश्वास दिलाते हैं कि सभी आर्थिक संकेत बढ़े हुए लक्ष्य निर्धारित करेंगे। मैं ऐसा कोई आंकड़ा देकर क्षमता और प्रयासों को कमजोर नहीं करना चाहता जो बहुत कम हो सकता है।’’
प्रश्न संख्या 13 : भूमि अधिग्रहण विधेयक पर गतिरोध बना हुआ है, इसका क्या समाधान है? क्या आप भूमि विधेयक पर विपक्ष के विचारों को अपनाने को तैयार हैं। किन संभावित पहलुओं में सरकार विपक्ष के विचारों पर सहमत हो सकती है?
उत्तर :गांव, गरीब, किसान। अगर सुझाव इन वंचित समूहों के पक्ष में होते हैं और देश के हित में होते हैं तो हम उन सुझावों को स्वीकार करेंगे।
प्रश्न संख्या 14 : इस साल जब भी अल्पसंख्यक समुदाय या अल्पसंख्यक संस्थानों के किसी व्यक्ति पर हमला किया गया तो उसके लिए आपकी सरकार और संघ परिवार पर बार बार निशाना साधा गया। व्यक्तिगत रूप से आप पर भी हमला बोला गया। आपको इस पर क्या कहना है?
उत्तर : देश में किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ किसी भी आपराधिक कृत्य की निंदा होनी चाहिए। हमलावरों को कानून के अनुसार कड़ी सजा मिलनी चाहिए। मैंने पहले यह कहा था और मैं फिर से यह कह रहा हूं कि किसी भी समुदाय के खिलाफ किसी तरह के भेदभाव या हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस बारे में मेरी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है: सबका साथ, सबका विकास। हम जाति या संप्रदाय पर ध्यान दिये बिना सभी 1.25 अरब भारतीयों के लिए खड़े हैं और हम इन सभी की प्रगति के लिए काम करेंगे।’’
प्रश्न संख्या 15: आपने पिछले एक साल में कई देशों की यात्रा की है। विपक्ष ने आप पर निशाना साधा और कहा कि आप देश में बहुत कम रहते हैं। इस आलोचना पर आपका क्या जवाब है?’’
उत्तर: हम एक दूसरे पर आश्रित दुनिया में रहते हैं। एक अलग-थलग भारत हमारे हित में नहीं है। किसी भारतीय प्रधानमंत्री का 17 साल तक नेपाल नहीं जाना कोई अच्छी बात नहीं है। चूंकि हम बड़े देश हैं, इसलिए अहंकार नहीं कर सकते और दूसरों की अनदेखी करने के बारे में नहीं सोच सकते।हम एक अलग कालखंड में रह रहे हैं।आतंकवाद वैश्विक है और सुदूर देशों से भी पनप सकता है।अंतरराष्ट्रीय शिखर-सम्मेलन और डब्ल्यूटीओ जैसे संगठनों के फैसलों के प्रति हम बंधे होते हैं और यदि हम ऐसे सम्मेलनों में भाग नहीं लेंगे तो हम वहां लिये गये फैसलों से आहत हो सकते हैं। लोकतंत्र में सभी को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है।सामान्य रूप से विपक्ष को मीडिया में ज्यादा जगह मिलती है और लोगों को तत्कालीन सरकार के खिलाफ चीजें सुनना रोचक लगता है। मैंने जब से पदभार संभाला है, तब से विपक्ष में बैठे मेरे मित्र मेरी विदेश यात्राओं के बारे में बेबुनियादी आरोप लगा रहे हैं।अगर ये यात्राएं विफल रहीं या हमने कोई गलती की, तो वे विशेष मुद्दों पर अपने बयान दे सकते हैं। लेकिन कोई विशेष मुद्दा नहीं होने पर वे केवल दिनों की संख्या और देशों की संख्या की बात कर रहे हैं। जनता की परिपक्वता देखिए कि सभी हालिया सर्वेक्षण दिखाते हैं कि हमारी विदेश नीति को सर्वाधिक स्वीकृति की रेटिंग मिली है। जब विरोधी एक ही चीज पर अटके हों तो यह सफलता का स्पष्ट संकेत है।’’
प्रश्न संख्या 16 : ऐसे में जबकि विपक्ष द्वारा आप पर कोरपोरेट समर्थक होने के आरोप लगाए जा रहे हैं , उधर दीपक पारिख जैसे उद्योग जगत की कुछ हस्तियां कह रही हैं कि उद्योगों के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हो रहा है।आपका क्या कहना है?
उत्तर : आपके सवाल में ही जवाब मिलेगा।यदि विरोधी हम पर कोरपोरेट समर्थक होने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन कोरपोरेट कह रहे हैं कि हम उनकी मदद नहीं कर रहे हैं...तो मैं इसे इस तरह से लेता हूं कि हमारे फैसले और हमारी पहलें जन समर्थक हैं और दीर्घकाल में राष्ट्र हित में हैं।
प्रश्न संख्या 17 : राहुल गांधी हाल ही में सक्रिय हो उठे और उन्होंने किसानों के मुद्दों के साथ ही भूमि अधिग्रहण विधेयक का मसला उठाया। वह आपकी सरकार को ‘सूट बूट की सरकार’ भी कह चुके हैं।इस पर आपकी टिप्पणी क्या है?
उत्तर : कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है और उसे 50 से भी कम सीटें लेकर बैठना पड़ा।एक साल बाद भी,वे इसे पचा नहीं पा रहे हैं।जनता ने उन्हें उनकी भूल चूक के पापों की सजा दी है।हमने सोचा था कि वे इससे सीखेंगे लेकिन ऐसा लगता है कि वे पहले कही गयी इस बात को सही साबित कर रहे हैं कि ‘इफ कॉन इज द अपोजि़ट ऑफ प्रो’ तब कांग्रेस प्रगति की विपरीतार्थक है ।
प्रश्न संख्या 18 : हाल ही में , कैग ने देश की रक्षा तैयारियों पर सवाल उठाए हैं । ऐसा कहा गया कि यदि कोई युद्ध होता है तो सेना के पास जो गोला बारूद है वह केवल 10. 20 दिन का ही है।इसकी रिपोर्ट वर्ष 2013 के आंकड़ों पर आधारित थी।आप इस पर क्या कहेंगे ?
उत्तर : राष्ट्रीय सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है और मैं नहीं समझता कि इस प्रकार के ब्यौरे पर सार्वजनिक मंच पर चर्चा करना उचित है।हालांकि , मैं अपने देशवासियों को आश्वासन दे सकता हूं कि हमारी सेना , नौसेना , वायुसेना और तटरक्षक बलों के बहादुर योद्धाओं के हाथों में देश सुरक्षित है।
प्रश्न संख्या 19 : चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वायदों में एक वादा था कि नयी सरकार काले धन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी। क्या इस पर कोई प्रगति हुई है ?
उत्तर : पदभार संभालने के बाद इस सरकार का सबसे पहला फैसला काले धन पर आगे बढ़ने के लिए विशेष जांच दल का गठन करना था। यह कदम पिछले कई सालों से बिना किसी कार्रवाई के लंबित था और हमने इसे अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में अंजाम दे दिया। इसके बाद, हम एक नया विधेयक भी लेकर आए जो विदेशों में जमा काले धन से निपटेगा और इसमें कड़े दंड का भी प्रावधान किया गया है । हमारे प्रयासों का शुक्र मनाइए कि नवंबर 2014 में कर चोरी पर नियंत्रण के लिए जी 20 शिखर बैठक में एक समझौते पर पहुंचा गया जिसमें देशों के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान खास बात थी। इससे हमें काले धन का पता लगाने में मदद मिलेगी। ये काफी मजबूत और ठोस कार्रवाइयां हैं।
प्रश्न संख्या 20 : सरकार के कामकाज के तौर तरीकों में बदलाव के लिए आपने क्या प्रयास किया?
उत्तर : हमने सरकारी सेवकों को यह याद दिलाने का प्रयास किया कि वे जनता के सेवक है और केंद्र सरकार के कार्यालय में अनुशासन बहाल किया। मैंने छोटे छोटे काम किये, जो बाहर से देखने पर काफी छोटे प्रतीत होते हैं। मैंने नियमित रूप से अधिकारियों के साथ चाय पर बात की, यह मेरे काम करने का तरीका है।दार्शनिक तौर पर मैं महसूस करता हूं कि देश तभी प्रगति करेगा जब हम एक टीम के रूप में काम करेंगे। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक टीम हैं। कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री एक अन्य टीम हैं। केंद्र और राज्य के नौकरशाह भी एक टीम हैं। यह एकमात्र रास्ता है कि हम सफलतापूर्वक देश का विकास कर सकते हैं। हमने इसके लिए कई कदम उठाये हैं और योजना आयोग को समाप्त करना और इसके स्थान पर नीति आयोग को लाना जिसमें राज्य पूर्ण सहभागी हैं, यह इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
प्रश्न संख्या 21 : ऐसी आलोचना होती रही है कि पीएमओ में सभी शक्तियां केंद्रित हैं । क्या ऐसे विचारों में कोई सार है ?
उत्तर : यह एक लोडेड सवाल है। अच्छा यह होता कि यह सवाल तब पूछा गया होता जब एक असंवैधानिक प्राधिकार संवैधानिक सत्ता पर बैठी थी और प्रधानमंत्री कार्यालय पर शक्तियों का उपायोग कर रही थी। प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय संवैधानिक व्यवस्था का हिस्सा है और इससे बाहर नहीं है। हमने मंत्रियों को अधिक अधिकार दिए हैं ताकि कई निर्णय जो प्रधानमंत्री और कैबिनेट के समक्ष आते थे, उसका निर्णय अब मंत्री खुद कर सकते हैं। मंत्रालयों के वित्तीय आवंटन को तीन गुणा बढ़ाया गया है। राज्यों का अंतरण बढ़ाया गया है और राज्य अब नीति आयोग के माध्यम से शासन में पूर्ण हिस्सेदार बन गए हैं। सभी सफल और परिवर्तनीय प्रशासन में विभिन्न मंत्रालयों के बीच करीबी समन्वय की जरूरत है और इसमें कुछ भी अनोखा नहीं है। हमने सरकार के कामकाज के नियमों में कोई बदलाव नहीं किया और फैसले उनके द्वारा लिये जाते हैं, जो इसके लिए अधिकृत हैं।
प्रश्न संख्या 22 : आपको लोगों का भारी जनादेश मिला जो संप्रग 2 सरकार के अंतिम सालों में शासन के अभाव में बदलाव चाहते थे। एक वर्ष हो गया और ऐसी आवाजें आ रहीं हैं कि आप पूरी तरह से अच्छे दिन नहीं ला पाये । क्या लोग अधीर हो गए हैं ?
उत्तर : 21वीं सदी भारत की सदी होनी चाहिए लेकिन 2004 से 2014 तक बुरे विचार और बुरे कर्मो से देश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। प्रत्येक दिन एक नया बुरा दिन होता था और नये घोटाले आते थे। लोग नाराज हो गए थे। आज एक वर्ष बाद यहां तक कि हमारे विरोधियों ने भी हमारे उपर बुरे कर्मो का आरोप नहीं लगाया। आप मुझे बताएं, अगर कोई घोटाला नहीं हुआ, क्या यह अच्छे दिन नहीं हैं।
प्रश्न संख्या 23 : देश कृषि संकट का सामना कर रहा है। किसानों की आत्महत्या राजनीतिक छींटाकशी का विषय बन गया है। सरकार ने किसानों की स्थिति से निपटने के लिए कई कदम उठाये हैं। सरकार और क्या करने की योजना बना रही है ?
उत्तर : किसानों की आत्महत्या का मुद्दा कई वषरें से गंभीर चिंता का विषय रहा है। किस सरकार के तहत कितनी आत्महत्याएं हुई, इसकी तुलना करके अंक हासिल करके समस्या का समाधान नहीं निकलेगा। किसी भी पार्टी की सरकार के लिए और हम सभी के लिए, यहां तक कि एक भी आत्महत्या चिंताजनक है। मंैने काफी दुखी होकर संसद में कहा था कि सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष का आपस में कीचड़ उछालना निर्थक होगा और संसद की पवित्रता का सम्मान करते हुए हमें इस मुद्दे का मिलकर हल निकालना है। हमें यह पता लगाना है कि हमसे कहां गलती हुई और इतने वषरें में हम इसका समाधान क्यों नहीं निकाल सके। मैंने सभी दलों से हमारे किसानों की संतुष्टि और सुरक्षा के लिए सुझाव देने को कहा है। मैं हमारे किसानों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि यह सरकार उनके कल्याण के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
प्रश्न संख्या 24: लोकसभा चुनावों में बड़ी हार के बाद लगता है कि कांग्रेस पार्टी ने अब अपनी आवाज पा ली है, राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों सरकार पर हमला कर रहे हैं। श्रीमती गांधी ने आपकी सरकार पर संसद में हठपूर्ण अहंकार दिखाने का और प्रशासनिक पारदर्शिता को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि आपकी सरकार ‘एक व्यक्ति’ की सरकार है। आपका क्या जवाब है?
उत्तर: शायद, वह इस तथ्य का जिक्र कर रही हैं कि पहले वास्तव में संविधान से इतर प्राधिकार सत्ता चला रहे थे जबकि अब सत्ता संवैधानिक तरीकों से ही चल रही है।अगर हमारे उपर संवैधानिक माध्यमों से काम करने का और संविधान से इतर किसी प्राधिकार की बात नहीं सुनने का आरोप है तो मैं उस आरोप को स्वीकार करता हूं।
प्रश्न संख्या 25: गैर सरकारी संगठनों :एनजीओ: के साथ सख्ती के लिए भी आपकी सरकार की आलोचना हुई और अमेरिका ने कहा कि इस तरह की कार्रवाइयां बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी पर डर पैदा करने वाला असर कर सकती हैं। क्या यह एक डर पैदा करने वाली बात है?
उत्तर: मौजूदा विदेशी योगदान नियमन अधिनियम 2010 में संप्रग सरकार ने पारित किया था, इस सरकार ने नहीं। केवल पिछली सरकार द्वारा पारित कानून को लागू करने के लिए कदम उठाये जाते हैं। कानून के विपरीत कोई कार्रवाई नहीं की गयी। कोई देशभक्त नागरिक इसका विरोध नहीं कर सकता।
प्रश्न संख्या 26: श्रीमान, आप सहयोगात्मक संघवाद की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के रूप में मुख्यमंत्रियों के साथ काम करने का आपका क्या अनुभव है? इस सहयोगात्मक संघवाद को मजबूत करने में वे कितने सहयोगी हैं?
उत्तर: पिछले कई सालों में केंद्र के साथ मुख्यमंत्रियों के अनुभव से अविश्वास का माहौल बना है।दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। अब भी केंद्र और राज्यों के बीच परस्पर संशय की स्थिति है जो पिछले दशकों की विरासत के रूप में मिली है।हालांकि मैं कह सकता हूं कि विश्वास बनाने की दिशा में अच्छी शुरूआत हुई है। नीति आयोग देश को आगे बढ़ाने के लिए जोशपूर्ण केंद्र-राज्य साझेदारी के निर्माण के उत्प्रेरक के तौर पर काम कर रहा है। साझेदारी और टीम में काम करने की यह भावना धीरे-धीरे बढ़ रही है और आने वाले सालों में फल देखने को मिलेंगे।
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