बांग्लादेश की राजधानी ढाका में चारों ओर जाली से ढके ऑटो, जिसे यहां सीएनजी कहने का प्रचलन है, बेतरतीब रिक्शा की कतारों, लोगों की धक्कम पेल के बीच एक शख्स भीड़ के सैलाब को तेजी से चीरता चला जा रहा है। उनके पीछे एक जोड़ा लगभग घसीटते हुए साथ चल रहा है।
बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता और वहां अल्पसंख्यकों के लिए लड़ रहे 65 साल के रवींद्र घोष पुलिस स्टेशन की ओर कूच कर रहे हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक यानी हिंदू समुदाय की मालोती देवी और उनके पति की जमीन पर कब्जे के बाद दबंगों ने उन पर अत्याचार किए, मालोती रानी के साथ बदसलूकी की और पुलिस रिपोर्ट नहीं लिख रही है।
बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता रवींद्र घोष सुप्रीम कोर्ट के उनके कमरे में रोज यही नजारा रहता है। मुवक्किलों के साथ उनके पास पीड़ितों का जमावड़ा लगा रहता है, ऐसे बहुत से हिंदू परिवार हैं, जिन पर अत्याचार हुए हो रहे हैं और पुलिस रिपोर्ट नहीं लिख रही है। रवींद्र घोष कहते हैं, ‘सभी खराब नहीं होते। यहां पर भी कुछ अच्छे लोग हैं जो हमारी मदद करते हैं। दुर्भाग्य से उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है।’
रवींद्र घोष बगल में बैठे व्यक्ति की ओर हाथ से इशारा करते हुए कहते हैं, ‘मेरे सहकर्मी दोस्त गाजी को ही लीजिए। यह हर वक्त मेरे लिए खड़े रहते हैं। कई बार इन्होंने मेरी मदद की जिसका बयान भी मैं नहीं कर सकता।’ रवींद्र घोष बांग्लादेश में जाना पहचाना नाम है। हर दिन उनको अल्पसंख्यकों का पक्ष लेने की वजह से जान से मारने की धमकी मिला करती है, पर वह अपने काम में लगे हुए हैं, बिना किसी चिंता के।
सन 1971 में बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद हिंदुओं की संख्या इस इलाके में करीब 39 प्रतिशत थी जो अब घट कर मात्र 10 प्रतिशत रह गई है। ज्यादातर हिंदू परिवार बांग्लादेश छोड़ कर या तो अमेरिका-यूरोप बस गए हैं या भारत में पश्चिम बंगाल के कोलकाता को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया है।
वहां रहने वाले हिंदू परिवार मानते हैं कि यहां दिन ब दिन रहना मुश्किल होता जा रहा है। अब तो आवाज उठाने भर से जान को खतरा हो जाता है। पिछले दिनों बांग्लादेश में कई ब्लॉगरों की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वे अत्याचारियों के साथ-साथ सहिष्णुता और बराबरी के अधिकार के लिए लिख रहे थे। हाल ही में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में दो विदेशियों की भी हत्या कर दी गई।
मारे गए एक ब्लॉगर के परिवार से मिलने पर उन्होंने कुछ भी बोलने से पहले बस इतना अनुरोध किया कि उनके परिवार की पहचान छुपा दी जाए। उस युवा ब्लॉगर के पिता को लगातार धमकी मिल रही है क्योंकि उनकी बेटी अपने भाई के ब्लॉग को जीवित रखे हुए है।
उस ब्लॉगर के पिता कहते हैं, ‘मीडिया बिलकुल सहयोग नहीं करता। यहां भारत की तरह नहीं है कि कोई भी घटना हो तो पूरा मीडिया फौरन दौड़ पड़े। यहां तो हिंदुओं के मामले में कोई ध्यान नहीं देता। न अखबार खबर छापते हैं न टीवी चैनल हो रहे अत्याचार पर एक भी नहीं शब्द बोलते हैं।
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