ऊर्जा, गतिशीलता एवं हेल्थकेयर इंजीनियरिंग क्षेत्रों में स्थितरता पर आयोजित शिखर सम्मेलन- सीएटीएस 2015 की सिफारिशें सौंपने के लिए तैयार
इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्लोनोलॉजिकल साइंसेज की सिफारिशें सरकारों को सुपुर्द करने के लिए तैयार हैं। ‘पाथवेज टू स्सटैनबीलिटी फॉर एनर्जी, मोबेलिटी एंड हेल्थकेयर इंजीनियरिंग’, (सीएटीएस 2015) शिखर सम्मेलन का इस महीने के 13 से 15 के दौरान आयोजन किया गया। तीन दिवसीय कार्यक्रम में बेल्जियम, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, भारत, जापान, नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्वीडन, स्वीट्जरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका और उरुग्वे जैसे आदि देशों के प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय विद्वानों ने ऊर्जा, गतिशीलता एवं हेल्थकेयर पर अपने विचार रखे। ‘सीएईटीएस कनवोकेशन-2015’ के रूप में इस कार्यक्रम का समापन किया गया। इस दौरान ये सिफारिशें तैयार की गईं। भारत में भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी द्वारा सिफारिंशें सरकार को सौंपी जाएंगी।
सामान्य रूप से दीर्घकालिक स्थिरता हासिल करने के लिए ऊर्जा, गतिशीलता और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में तकनीकी चुनौती प्रमुख हैं।
ये हैं सिफारिशें :
ऊर्जा:
ऊर्जा संसाधनों में 'स्थिरता और उनकी लागत क्षमता के लिहाज से कम कार्बन गैर जीवाश्म ऊर्जा प्रणालियां का ही दबदबा रहेगा।
वैश्विक ऊर्जा खपत 2010 से 2040 के दौरान 524 से 820 शंख बीटीयू तक चला जाएगा। इसकी वजह से सामान्य परिदृश्य के रूप में वर्तमान में जीएचजी उत्सर्जन वृद्धि दर बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। जनसंख्या एवं धन संवर्द्धन के लिहाज से उर्जा विकास की गतिशीलता संचालित हो रही है। इसकी वजह से दुनिया के विभिन्न देशों में इस गतिशीलता को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
ऊर्जा / उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों और समयसीमा स्थापित करने को लेकर कम कार्बन उत्सर्जन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर वर्तमान ऊर्जा और उत्सर्जन के भार का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन की करने की आवश्यकता है।
उपयोग पर आधारित ऊर्जा परिदृश्यों का विकास भविष्य की ऊर्जा कुशल प्रणाली तैयार करने के लिए आवश्यक है। बिजली आपूर्ति प्रणाली, परिवहन एवं हिटिंग क्षेत्र इस एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।कोयला आधारित ऊर्जा ने इंजीनियरों को हमेशा से सफाई प्रणाली एवं जीएचजी उत्सर्जन को कम करने की प्रणाली विकसित करने को आकर्षित किया है। इसमें कोयला और बायोमास के लाभकारी उन्नयन, अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल दहन और गैसीकरण के लिए एकीकृत गैस संयुक्त चक्र की अवधारणा, को-फायरिंग की प्रक्रिया आदि शामिल है। सिलिकॉन से परे अगली पीढ़ी के सौर सेल ऊर्जा सामग्री, संयुग्म ऑर्गेनिक्स, अकार्बनिक क्वांटम डॉट्स और मिश्रित अर्धचालक आक्साइड के लिए / पेरोक्साइड को स्वीकार किए जाने की जरूरत है।
इसी तरह की चुनौतियां ईंधन सेल्स के लिए उपलब्ध सामग्री और उच्च ऊर्जा घनत्व बैटरी के क्षेत्र में दिख रही है। प्रौद्योगिकी भविष्य की ऊर्जा कुशल प्रणाली को विकसित करने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। इसके लिए एकीकृत फोटोनिक एवं बायो फोटोनिक प्रौग्योगिकी की जरूरत है।
इन मुद्दों पर विचार विमर्श करने वाले विशेषज्ञ समिति ने नैनो कंपोजिट और नैनो संरचित स्टील्स सहित उच्च शक्ति वाले हल्के वजन सामग्री विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। जिसे निर्माण और परिवहन क्षेत्र में आसानी से स्वीकार किया जा सके।
गतिशीलता:
भविष्य में अर्ध या पूरी तरह से स्वचालित परिवहन के वाहन तैयार करना और भारी भार उठाने के लिए मल्टी एक्सल हाइड्रोलिक ट्रेलरों का निर्माण करना इंजीनियरिंग क्षेत्र के लिए चुनौती होगी। डिजिटल प्रौद्योगिकी क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास के कारण रेल के बिजलीकरण, हवाई, समुद्री यातायात वाहनों के लिए नए द्वार खुलेंगे।पांच डिजिटल शक्तियां जैसे कि कलाज कप्यूंटिंग, मोबाइल प्रौद्योगिकी, सोशल नेटवर्क्स, बिग डाटा एवं रोबोटिक्स इन विकास गतिविधियों पर बड़ा प्रभाव डालेंगे।
निर्माण के दौरान शहरी और ग्रामीण परिवहन के पुनर्गठन के साथ पुल के डिजाइन एवं निर्माण प्रौद्योगिकियों, आभासी गतिशीलता और कार्बन पदचिह्न न्यूनीकरण में ये रोमांचक गतिविधियां जगह ले रही हैं। पुरातन प्रौद्योगिकी के नवीकरण के लिए यह आवश्यक है। सिविल इंजीनियरों के लिए पुलों के डिजाइन, निर्माण, रखरखाव, जीर्णोद्धार भविष्य की प्राथमिकताएं होंगी।
चीन में हुए शहर की रैपिड रेल परिवहन प्रणाली में हाल के घटनाक्रमों को देखते हुए भारत और जापान ने भूमिगत सुरंगों और संरचनाओं के निष्पादन में योजना, डिजाइन और अधिग्रहीत नए इंजीनियरिंग कौशल को लेकर उत्सुकता दिखाई है। इंजीनियरिंग के नजरिये से देखा जाए तो पुर्नचक्रण एवं क्रियाशील सामग्री अनुप्रयोगों ही स्थायी रोडवेज में उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों रहे हैं। उभरती अर्थव्यवस्थाओं में जन परिवहन को लेकर कई दुविधाएं हैं। यह निर्बाध संपर्क, बेहतर गतिशीलता, उन्नत सुरक्षा उपायों के प्रवर्तन, वाहनों और समय संस्करण यातायात के कई मांगों को लेकर सड़क के लिए न्यायसंगत आवंटन पर विचार करने के लिए महत्वपूर्ण है।
स्वास्थ्य क्षेत्र:
नए डायग्नोस्टिक उपकरण, अगली पीढ़ी के चिकित्सा उपकरणों और सूचना एवं विश्लेषण के आवेदन के संदर्भ में इंजीनियरिंग चुनौतियों की स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को इंतजार है।
हाल के नैनो के क्षेत्र में नैनो और डायग्नोस्टिक देखभाल के अग्रिम, बड़े पैमाने पर चिकित्सा एवं दूरदराज के नव निगरानी प्रणाली जल्दी और सुलभ निदान की संभावना में वृद्धि की है। इस व्यवस्था के लिए जमीनी तौर पर तैयार संरचनागत प्रणाली में सहयोगी हो सकता है। इसमें अग्रिम देश की इंजीनियर्स, प्रोडक्ट डिजायनर्स, बिजनेस एनालिस्ट और क्लीनिशियनों की बहुउद्देशीय टीम मददगार साबित हो सकती है।
टीसू इंजीनियरिंग, मैटेरियल साइंस, सेल फिजिक्स एवं डेवेलपमेंटल बॉयोलॉजी सहित रिजेनेरिटिव इंजीनियरिंग अगली पीढ़ी की मेडिकल उपकरण बनाने में कारगर हो सकती है। लोगों में बधिरता एवं दृष्टी दोष की बीमारी की समस्या से निपटने में बायोनिक इयर और आई तकनीकी ने काफी मदद की है। साथ ही इससे इस क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। संक्रामक एवं गैर संक्रामक रोगों के इलाज को लेकर हाल में तैयार सेंसर, दूरसंचार, गतिशीलता इंजीनियरिंग के लिए अगली पीढ़ी के उपकरण प्रौद्योगिकियां प्रमुख भूमिका निभाएंगी। सेंसिंग और डेटा विश्लेषणात्मक कौशल ने गहन स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में नई परिवर्तनकारी सामग्री के अवसर मुहैया कराएंगे। उन्नत कंप्यूटर आधारित उपकरण सूक्ष्म बायोम डेटा विश्लेष्ण में भारी मात्रा में जैविक रूप से सार्थक अंतर्दृष्टि के लिए आवश्यक हैं।
विशेषज्ञों की एक समिति ने इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य देखभाल विज्ञान के अभिसरण के मुद्दे की जांच की। अभिसरण के कारण स्वास्थ्य प्रणालियों में आईसीटी और बड़े एनालिटिक्स प्रभावशाली साबित हों, इसके लिए वे कुछ-कुछ कर रहे हैं। उनके बीच नई दवाओं की खोज में ग्रामीण और शहरी वातावरण और इंजीनियरों की भूमिका में अच्छी तरह से इंजीनियर प्रणालियों की खरीदने की क्षमता सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी डॉ मंत्री हर्षवर्धन ने पिछले सप्ताह सप्ताह दीक्षांत समारोह का उद्घाटन किया। उन्होंने इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मजबूत रणनीति सुझाने को लेकर वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह किया है। मंत्री ने ‘ट्रांसिशिनिगं टू लोवर कार्बन इकोनॉमीः टेक्नोलॉजिकल एंड इंजीनियरिंग कंसीडिरेशंस फॉर बिल्डिंग एंड ट्रांस्पोर्टेशन सेक्टर्स’ पर आधारित सीएईटीएस के वर्जन की रिपोर्ट को भी औपचारिक तौर पर शुरू किया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर अशुतोष शर्मा ने विकासशील देशों में चुनिंदा विषयों के महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख किया है।
वैश्विक निकाय सीएईटीएस और कननोकेशन-2015 की अगुवाई करने वाले पहले भारतीय बने प्रख्यात परमाणु वैज्ञानिक डॉ. बलदेव राज को भारत में पहली बार इस तरह के प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय डोमेन विशेषज्ञों के अभिसरण की अनूठी विशिष्टता के साथ श्रेय दिया जाता है।
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