भारतीय खाद्य निगम खाद्यान्नों की खरीद के लिए केन्द्रीय नोडल एजेंसी है और यह राज्य सरकार की एजेंसियों (एसजीए) के सहयोग से गेहूं और धान/चावल के खरीद प्रचालन करता है। धान के मामले में यह अनिवार्य है कि राज्य सरकार की एजेंसियां किसानों से खरीदे गए धान को यथाशीघ्र चावल में परिवर्तित करके कस्टम मिल्ड चावल (सीएमआर) भारतीय खाद्य निगम को वितरण के लिए सौंपें। भारत सरकार, भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सीएमआर की लागत का भुगतान धान को चावल में परिवर्तित करने की लागत सहित राज्य सरकार की एजेंसियों को करती है। धान की प्रोसेसिंग समयबद्ध तरीके से करना अपेक्षित है, क्योंकि धान की “शेल्फ लाईफ” सीमित होती है और इस प्रयोजनार्थ राज्य सरकार की एजेंसियां चावल मिलरों की नियुक्ति उनके साथ एक सुपरिभाषित करार के अंतर्गत करती हैं।
राज्य सरकार की एजेंसियों को मिलिंग प्रभारों की प्रतिपूर्ति करने के लिए खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने टैरिफ आयोग की सिफ़ारिशों पर आधारित एक दर संरचना अपनाई है। चूंकि भारतीय खाद्य निगम अथवा राज्य सरकार की एजेंसियों के लिए धान की प्रोसेसिंग से प्राप्त सह-उत्पादों को लेना और उनका विपणन करना व्यावहारिक नहीं है, अतः मिलिंग प्रभारों हेतु टैरिफ आयोग के फार्मूले का आधारभूत सिद्धांत यही है कि चावल मिल मालिक सह-उत्पादों को अपने पास रखेंगे और मिल मालिकों को भुगतान किए जाने वाले नेट मिलिंग प्रभारों की गणना एवं सिफ़ारिश करते समय टैरिफ आयोग द्वारा इन सह-उत्पादों के मूल्य को भी संज्ञान में लिया जाएगा। टैरिफ आयोग के इसी फार्मूले का उपयोग करते हुए यह विभाग धान की प्रोसेसिंग से प्राप्त सह-उत्पादों के मूल्य को अलग से दर्शाए बिना ही राज्य सरकार की एजेंसियों को तय दरों पर मिलिंग प्रभारों का भुगतान करता रहा है।
धान की मिलिंग के लिए मौजूदा दरों का निर्धारण टैरिफ आयोग द्वारा वर्ष 2005 में की गई सिफ़ारिशों के आधार पर किया गया था। टैरिफ आयोग ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि सकल मिलिंग लागत और मिलिंग के दौरान सह-उत्पादों से प्राप्त राशि मिल-दर-मिल और राज्य-दर-राज्य अलग होती है। इसी प्रकार, ढुलाई और प्रेषण की लागत भी अलग-अलग होती है। अतः आयोग का यह अभिमत था कि क्षेत्र/ राज्य विशिष्ट मिलिंग लागत निर्दिष्ट करना व्यवहार्य नहीं है और उनकी अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर उन्होने कच्चे चावल के लिए मिलिंग प्रभार 15.32 रुपए/क्विंटल की दर से और सेला चावल के लिए 25.48 रुपए/ क्विंटल की दर से निर्धारित करने की सिफ़ारिश की थी, जिसमें 8 किमी तक धान की ढुलाई की लागत और एफसीआई/ राज्य सरकार की एजेंसियों को सुपुर्दगी के लिए इसी दूरी के लिए चावल की ढुलाई की लागत शामिल है।
टैरिफ आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की जांच खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग में की गई थी और मिलिंग प्रभारों की वर्तमान दर, वर्ष 2005 में कच्चे चावल के लिए 15 रुपए/क्विंटल और सेला चावल के लिए 25 रुपए/ क्विंटल निर्धारित की गई थी, जिसमें मंडी/भंडारण स्थान से मिल तक 8 किमी तक और मिलों से एफसीआई के भंडारण गोदामों तक 8 किमी तक ढुलाई प्रभार शामिल है। तथापि, यदि कोई राज्य सरकार धान/चावल की ढुलाई की व्यवस्था स्वयं करती है, तो उन्हें ढुलाई प्रभार का भुगतान अलग से किया जाता है और मिलिंग प्रभारों का भुगतान कच्चे चावल के लिए केवल 10 रुपए/ क्विंटल और सेला चावल के लिए 20 रुपए/क्विंटल की दर से किया जाता है। ये दरें आदेश सं. 192(12)/1997-एफसी लेखा दिनांक 04.06.2006 द्वारा खरीफ विपणन मौसम 2006-07 से लागू की गई थीं।
मिलिंग की लागत में वृद्धि और धान के सह-उत्पादों से प्राप्त आय में संभावित वृद्धि के मद्देनजर मिलिंग प्रभारों में संशोधन के लिए कुछ राज्य सरकारों से प्राप्त अनुरोध को ध्यान में रखते हुए टैरिफ आयोग को वर्ष 2009 में एक और अध्ययन सौंपा गया था और उनकी रिपोर्ट वर्ष 2012 में प्राप्त हुई थी। तथापि, अपनी रिपोर्ट में, टैरिफ आयोग ने पर्याप्त आंकड़ों की अनुपलब्धता के कारण मिलिंग प्रभारों में संशोधन करके उन्हें बढ़ाने/ घटाने के संबंध में कोई विशेष सिफारिश नहीं की थी और यथास्थिति बनाए रखने की सिफारिश की थी जिसे इस विभाग द्वारा स्वीकार किया गया था एवं मौजूदा मिलिंग प्रभारों को जारी रखने का निर्णय लिया गया था।
चूंकि कई राज्य सरकारें मिलिंग प्रभारों में संशोधन कर उन्हें बढ़ाने का अनुरोध इस आधार पर कर रही थीं कि मौजूदा दरें वर्ष 2005 में निर्धारित की गई थी और मिलिंग की लागत में भी वृद्धि हुई है, सलाहकार (लागत), खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग को स्थिति की त्वरित समीक्षा करने के लिए कहा गया था। अपनी सिफारिशों में, सलाहकार (लागत) के नेतृत्व में गठित टीम ने टैरिफ आयोग की वर्ष 2005 एवं 2012 की दोनों रिपोर्टों का विश्लेषण किया और मिल-मालिकों/राज्य सरकारों आदि से प्राप्त सूचना का अध्ययन किया एवं यह सिफारिश की थी कि मौजूदा सुपरिभाषित एक-समान आउट टर्न अनुपात और उपज तथा सह-उत्पादों के मूल्य को देखते हुए रॉ चावल के मिलिंग प्रभारों में बढ़ोतरी करने की कोई गुंजाइश नहीं है। इस टीम ने मौजूदा प्रभारों को जारी रखने की सिफारिश की थी। समिति की रिपोर्ट को दिनांक 26.02.2013 को उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के अनुमोदन से स्वीकार किया गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार की एजेंसियों को भुगतान किए जाने वाले मिलिंग प्रभारों की नार्मेटिव दरों की सिफारिश करते समय टैरिफ आयोग द्वारा सह-उत्पादों के मूल्यों पर सदैव विचार किया गया है।
संबंधित समाचार कतिपय स्रोतों द्वारा विभिन्न सरकारी/ गैर-सरकारी एजेंसियों को नियमित रूप से उपलब्ध कराई जा रही गलत सूचनाओं पर आधारित प्रतीत होते हैं। इन समाचारों में कहा गया है कि सह-उत्पादों के मूल्यों के कारण सरकार को प्रतिवर्ष 10000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है जिसका कोई साक्ष्य नहीं है। उनमें इस तथ्य को पूरी तरह छिपाया गया है कि टैरिफ कमीशन मिलिंग दरों की सिफारिश करते समय बाय-प्रोडक्ट के मूल्य को पूरी तरह से समायोजित करता है। इसमें हाल के वर्षों में धान की प्रोसेसिंग के सह-उत्पादों के मूल्य में हुई वृद्धि का उल्लेख किया गया है, किन्तु इसमें चावल मिलों के खर्चों में हुई वृद्धि के संबंध में कुछ नहीं कहा गया है। चूंकि अधिकांश राज्यों ने यह उल्लेख करते हुए कि मिल मालिकों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा और वे राज्य सरकार की एजेंसियों द्वारा खरीदे गए धान की मिलिंग करने के इच्छुक नहीं है, समय-समय पर नार्मेटिव मिलिंग प्रभारों में संशोधन करके वृद्धि करने की मांग कर रहे हैं, अत: इसको ध्यान में रखते हुए इस विभाग ने नार्मेटिव मिलिंग प्रभारों की समीक्षा करने के लिए एक नया अध्ययन करने के लिए दिसम्बर, 2013 में ही टैरिफ आयोग से अनुरोध कर दिया था। टैरिफ आयोग द्वारा दिसम्बर, 2015 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने की संभावना है।
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण द्वारा टैरिफ कमीशन से मिलिंग दरों व बाय-प्रोडक्ट के मूल्य आदि के संबंध में एक ताजा अध्ययन करने के लिए भी कहा गया है और उनकी यह रिपोर्ट दिसम्बर, 2015 के अंत तक प्राप्त होने की आशा है, जिसके आधार पर विभाग मिलिंग दरों को पुनरीक्षित करने के संबंध में शीघ्र ही नया निर्णय लेगा।
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