जल संसाधन मंत्रालय का कुल संसाधन आबंटन 2015-16 के 7,431 करोड़ रुपये की तुलना में 2016-17 के बजट में बढ़ाकर 12, 517 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह बजटीय समर्थन और बाजार उधार से हुआ है । यह 168 प्रतिशत से अधिक वृद्धि है ।
यह जानकारी आज नई दल्ली में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने दी। उन्होंने बताया कि भू-जल के आवंटन में 85 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और सतत भू-जल संसाधन के लिए 6,000 करोड़ रुपये के प्रमुख कार्यक्रम को स्वीकृति मिली है ।
सुश्री उमा भारती ने शीघ्र सिचांई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) की चर्चा करते हुए बताया कि इस कार्यक्रम के तहत अब तक कुल 297 परियोजनाएं शुरू की गई हैं और जिनमें से अब तक 143 परियोजनाएं पूरी हो गई हैं। 149 चल रही परियोजनाओं में से 89 परियोजनाओं को सक्रिय पाया गया है और उनमें से 46 परियोजनाएं उच्च प्राथमिकता श्रेणी के तहत रखी गई हैं। ये परियोजनाएं संभवत: विभिन्न स्तरों में 2020 के अंत तक पूरी हो जाएंगी। इसके अतिरिक्त इन 46 परियोजनाओं में से आगे 23 परियोजनाओं को चुना गया है और इन्हें मार्च, 2017 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने कहा कि इन परियोजनाओं पर कार्य मिशन मोड में किया जा रहा है ताकि परियोजनाएं निर्धारित समय तक पूरी हो जाएं और इन परियोजनाओं से कृषकों को पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके। उन्होंने बताया कि इन परियोजनाओं के लिए निधि की व्यवस्था करने के लिए एक नवाचारी निधियन प्रणाली तैयार की गई है। केन्द्र और राज्यों के वार्षिक बजट से 10-20 वर्षों के बीच पुनर्भुगतान अनुसूची सहित बाजार ऋण से निधिकी व्यवस्था की जाएगी। प्राथमिकता वाली परियोजनाओं को पूरा करने के लिए केन्द्र और राज्य दोनों मिलकर मिशन मोड में कार्य करेंगे। इस कार्य में और तेजी लाने के लिए तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्रियों सहित कुछ अन्य राज्यों के प्रधान सचिवों की एक समिति गठित की गई है।
सुश्री भारती ने कहा कि भारत में भूमि जल संसाधनों के अतिदोहन, अस्थायी सिंचाई और जल गुणवत्ता गिरने से भूमि जल आपूर्ति की विश्वसनीयता को खतरा हो रहा है। भारत विश्व भर में भूमि जल का सबसे बड़ा प्रयोक्ता है। कुल उपलब्ध 433 क्यूबिक किलोमीटर पुनर्भरणीय स्रोतों में से प्रति वर्ष 245 क्यूबिक किलोमीटर भूमि जल दोहन का अनुमान है जो कि विश्व के कुल जल का एक चौथाई से अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में 60 प्रतिशत से अधिक सिंचित कृषि और 85 प्रतिशत पेयजल आपूर्ति भूमि जल पर आधारित है। राष्ट्रीय भूमि जल प्रबंधन सुधार परियोजना में स्थायी भूमि जल संसाधन प्रबंधन और सुधारों के लिए एक वातावरण तैयार करने के लिए सहायता का प्रस्ताव है ।
उन्होंने बताया कि कुल वित्तीय परिव्यय 6000 करोड़ रूपये है जिसमें से 3000 करोड़ रूपये आईबीआरडी ऋण के रूप में मिलेंगे । परियोजना की अवधि 6 वर्ष है। परियोजना के चार प्रमुख घटक हैं- भूमि जल प्रबंधन के लिए निर्णय सहायता तंत्र, स्थायी भूमि जल प्रबंधन के लिए क्षेत्र विशिष्ट ढ़ांचा, भूमि जल पुनर्भरण को बढ़ाना और जल उपयोग दक्षता में सुधार, समुदाय आधारित प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण। परियोजना जल की कमी वाले पता लगाये गये 5 राज्यों (हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक) में कार्यान्वित की जानी है।
सुश्री भारती ने कहा कि सीजीडब्ल्यूबी ने विश्व भर में जलभृत्तों के मानचित्रण के संबंध में सबसे अधिक प्रयास किया है जिसके तहत देश में मानचित्र तैयार करने योग्य कुल क्षेत्र लगभग 23.25 लाख वर्ग किलोमीटर और कछारी क्षेत्र में इसका वर्टीकल विस्तार 300 मीटर और कठोर चट्टानी क्षेत्र में 200 मीटर है । जलभृत्त का विस्तार, उनकी क्षमता, संसाधन उपलब्धता, रासायनिक गुणवत्ता, उसके स्थायी प्रबंधन विकल्पों का पता लगाया जाएगा । उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम से किसानों के लाभ के लिए दीर्घकालीन स्थायित्व उपलब्ध कराने के हेतु भूजल के सहभागिता आधारित प्रबंधन में सहायता मिलेगी ।
सुश्री भारती ने बताया कि इस समय भूमि जल की कमी वाले 8 राज्यों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। इसमें हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और बुंदेलखंड का 5.25 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र शामिल हैं। 1.16 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का मानचित्रण पूरा हो गया है। शेष का मानचित्रण मार्च, 2017 तक पूरा किया जाना है। संपूर्ण देश में यह कार्य 2022 तक पूरा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि 87 जिलों को शामिल करते हुए 10 राज्यों के 331 ब्लॉकों के अलग-थलग क्षेत्रों में आर्सेनिक संदूषण का पता लगा है। जलभृत मानचित्रण से गंगा के मैदानी क्षेत्रों में आर्सेनिक मुक्त गहरे जलभृतों का पता लगाने में सहायता मिली है। सीजीडब्ल्यूबी ने पिछले वर्ष के दौरान प्रभावित क्षेत्रों में 274 कुओं का निर्माण किया है जो स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए राज्य सरकार को निःशुल्क सौंप दिए गए थे। इससे लगभग 30 लाख लोग लाभान्वित हुए हैं। इस वर्ष सीजीडब्ल्यूबी ने पेयजल के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए कुओं का निर्माण करके उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के चयनित क्षेत्रों में जोर देते हुए आर्सेनिक नियंत्रण कार्य शुरू किया है जिससे लगभग 8 लाख लोगों को लाभ होगा। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बैरिया ब्लॉक और गाजीपुर जिले के करंडा ब्लॉक के आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्र में गहरे जलभृतों से जल का प्रयोग करते हुए 62 कुओं का निर्माण किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार, ब्रह्मपुर ब्लॉक, बक्सर जिले (बिहार), साहिबगंज, राजमहल एवं उध्वा ब्लॉक, साहिबगंज जिले (झारखंड) और पंडुआ ब्लॉक, हुगली जिले (पश्चिम बंगाल) में 147 कुओं का निर्माण किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 में सीजीडब्ल्यूबी ने बीएआरसी और एनईईआरआई के साथ मिलकर जारी राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन परियोजना (एनएक्यूयूआईएम) के अंतर्गत हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश राज्यों के कुछ भागों में पालियो चैनलों के संबंध में स्थल विशिष्ट अध्ययन शुरू किए हैं। प्रो. वाल्डिया, पद्म भूषण की अध्यक्षता में पालियो चैनल/सरस्वती नदी के संबंध में उपलब्ध सूचना की समीक्षा करने के लिए प्रतिष्ठित शोधकर्ताओं को शामिल करते हुए राष्ट्र स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित की जा रही है
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