नोटबंदी के कदम से संपत्ति की कीमतें कम होंगी, इससे 'सभी के लिए आवास' के सपने को साकार करने में मदद मिलेगी
उच्च मूल्य के नोटों के चलन को बंद करने के कदम के जरिए काले धन के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक अचल संपत्ति क्षेत्र को हिला कर रख देगी, क्योंकि इस क्षेत्र में मुख्यत: अघोषित पैसे से ही लेन-देन होते रहे हैं। इस ऐतिहासिक कदम से शुरू में इस सेक्टर को सुस्ती का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन काला धन बाहर निकालने एवं पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से की गई यह बड़ी अहम पहल अचल संपत्ति क्षेत्र के लिए एक वरदान साबित होगी।
रियल एस्टेट एक परिसंपत्ति वर्ग है जिसमें बड़े पैमाने पर काला धन लगाया जाता रहा है। आधिकारिक दर और बाजार दर में बड़ा अंतर होने के कारण संपत्ति के लेन-देन में भारी-भरकम नकदी का इस्तेमाल होता रहा है। वैसे तो बैंकों के जरिए मिलने वाले आवास ऋण की बदौलत प्राथमिक बाजार विशेषकर आवासीय क्षेत्र में नकद राशि का लेन-देन बेहद कम संख्या में होता है, लेकिन द्वितीयक बाजार में 30 फीसदी या उससे भी ज्यादा नकद राशि लगाई जाती रही है। महंगे लक्जरी मकानों के लिए होने वाले सौदों में भी नकदी का लेन-देन होता है। जहां तक जमीन का सवाल है, उससे संबंधित सौदों में 40 से लेकर 60 फीसदी तक की नकदी के इस्तेमाल की संभावना रहती है। अचल संपत्ति से जुड़े डेवलपर संपत्ति के मूल्य पर छूट की पेशकश करके नकद भुगतान को प्रोत्साहित करते हैं। काला धन रखने वाले निवेशक सटोरिया खरीदारी करते रहे हैं, जिससे कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ जाती हैं और इससे मुनाफावसूली को बढ़ावा मिलता है। विगत वर्षों के दौरान बदस्तूर जारी रहे इस चलन से मकानों की कीमतें इतनी ज्यादा बढ़ गईं कि वे आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए।
हालांकि, नोटबंदी के जरिए सरकार द्वारा काले धन के खिलाफ उठाये गए इस अहम कदम से बेहिसाब पैसा रखने वाले सटोरिये बाजार प्रणाली से बाहर हो जाएंगे, जिसके परिणामस्वरूप संपत्ति की कीमतें नीचे आ जाएंगी। इससे पहले संपत्ति के लेन-देन में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। विगत दो वर्षों के दौरान सरकार ने अचल संपत्ति एवं आवास क्षेत्र में अनेक सुधारों को लागू किया है, ताकि जहां एक ओर यह क्षेत्र और ज्यादा विश्वसनीय, पारदर्शी एवं निवेशक अनुकूल बन सके, वहीं दूसरी ओर मकानों की कीमतें आम आदमी के लिए किफायती हो सके। इस व्यापक उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ‘वर्ष 2022 तक सभी के लिए आवास’ नामक अपना प्रमुख कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के तहत सरकार ने छह करोड़ मकान बनाने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सरकार किफायती एवं कम लागत वाले मकानों को बढ़ावा दे रही है क्योंकि सर्वाधिक किल्लत इसी सेगमेंट में है। सरकार ने किफायती मकानों को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय आवास बैंक को 4000 करोड़ रुपये का आवंटन किया और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए मकान एवं झुग्गी बस्तियों के पुनर्विकास को सीएसआर के दायरे में ला दिया। निर्मित क्षेत्र और पूंजीकरण संबंधी आवश्यकताओं के लिए छूट दी गई, ताकि एफडीआई तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित हो सके। दस लाख रुपये तक की कम लागत वाले मकानों के लिए छह फीसदी की रियायती ब्याज दर की शुरुआत की गई।
आसानी से सस्ता कर्ज न मिलना अचल संपत्ति क्षेत्र के लिए अभिशाप साबित हुआ है। इस क्षेत्र में वित्त पोषण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एफडीआई के नियम आसान कर दिए और वित्त पोषण के विभिन्न स्वरूपों में भेदभाव समाप्त कर दिया। इन सुधारों के अलावा सरकार ने अत्यंत महत्वपूर्ण ‘अचल संपत्ति नियमन अधिनियम’ का मार्ग प्रशस्त कर दिया, जो लंबे समय से अटका हुआ था। संपत्ति के लेन-देन को और पारदर्शी एवं सुरक्षित बनाने के लिहाज से यह एक ऐतिहासिक विधान है। इससे संपत्ति, विशेषकर मकान के खरीदारों के हितों की रक्षा होगी, जो बेईमान डेवलपर्स के जाल में फसंते रहे हैं। इसके अलावा जीएसटी विधेयक के साथ–साथ एकल खिड़की मंजूरी वाली प्रस्तावित प्रणाली से कारोबार करने में सुगमता को बढ़ावा मिलेगा।
बेनामी संपत्ति अधिनियम के साथ-साथ सरकार के इस नोटबंदी कदम को इसी पृष्ठभूमि यानी सरकार की बहुआयामी नीति के रूप में देखा जाना चाहिए, जिससे त्वरित आर्थिक विकास के लिए संस्थागत एवं नियामक ढांचे का सृजन होगा। इन सभी कदमों से निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और विदेशी निवेशकों के लिए अचल संपत्ति निवेश के लिहाज से एक आकर्षक परिसंपत्ति वर्ग में तब्दील हो सकेगी। इसका असर पहले से ही देखा जा रहा है क्योंकि वैश्विक पेंशन फंडों ने अचल संपत्ति एवं बुनियादी ढांचे में अरबों डॉलर के निवेश का वादा किया है।
नोटबंदी का एक अन्य असर ब्याज दरों में और कटौती के रूप में देखा जा रहा है, जिनमें पिछले तकरीबन 18 महीनों में 1.5 प्रतिशत की कमी आ चुकी है। नोटबंदी से बैंकिंग प्रणाली में तरलता को बढ़ावा मिला है और घटती महंगाई को ध्यान में रखते हुए बैंकर एवं वित्तीय विश्लेषक आरबीआई द्वारा दिसंबर में की जाने वाली नीतिगत समीक्षा के दौरान रेपो रेट में 0.25 फीसदी से लेकर 0.50 फीसदी तक की कटौती की उम्मीद कर रहे हैं, जिससे प्रभावी ब्याज दरें 9 फीसदी से नीचे आ जाएंगी।
नव वर्ष में हम वाजपेयी सरकार के युग में अग्रसर होने की उम्मीद कर सकते हैं, जब ब्याज दरें 7 से लेकर 8 फीसदी की रेंज में थीं। संपत्ति की कीमतों के नीचे आने और ब्याज दरों में कमी के रूप में नोटबंदी के इस दोहरे असर से मकान सस्ते होंगे और ‘सभी के लिए आवास’ का सपना साकार होगा। जब नोटबंदी के कारण उपजी आरंभिक अस्थिरता खत्म हो जाएगी तो अचल संपत्ति क्षेत्र सतत विकास की दिशा में अपेक्षाकृत अधिक स्थिरता एवं सामर्थ्य के साथ और मजबूत होकर उभरेगा।
लेखक विनोद बहल दिल्ली में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार हैं और वह अचल संपत्ति एवं बुनियादी ढांचागत क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर प्रमुख समाचार पत्रों में नियमित रूप से लिखते रहे हैं।
इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं।
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