संस्कृत का अध्ययन करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है और इसका औचित्य साबित करने के लिए उच्चतर आध्यात्मिक प्रोत्साहनों के आह्वान की कोई आवश्यकता नहीं है : उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति महोदय ने आईसीसीआर विश्व संस्कृत पुरस्कार 2015-16 प्रदान किये
उपराष्ट्रपति श्री एम.हामिद अंसारी ने कहा है कि संस्कृत का अध्ययन करना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है और इसका औचित्य साबित करने के लिए उच्चतर आध्यात्मिक प्रोत्साहनों के आह्वान की कोई आवश्यकता नहीं है। वह भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) द्वारा विश्व संस्कृत पुरस्कार 2015-16 प्रदान करने के बाद जनसमूह को संबोधित कर रहे थे। उपराष्ट्रपति महोदय ने थाईलैंड की राजकुमारी महा चक्री सीरिन धोर्न और एक अमेरिकी भाषाविद् तथा इंडोलॉजिस्ट प्रोफेसर जॉर्ज कॉरडोना को आईसीसीआर के विश्व संस्कृत पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ता होने पर बधाई दी। इस अवसर पर विदेश राज्य मंत्री श्री एम.जे. अकबर और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि संस्कृत महत्वपूर्ण है और इस भाषा में सृजित वैज्ञानिक, दार्शनिक, धार्मिक एवं काव्य ग्रन्थों का संग्रह निश्चित रूप से विश्व में सबसे समृद्ध है और हमेशा से वैश्विक शाब्दिक संस्कृति में योगदान देता आ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय प्रतिभा को आकार देने में संस्कृत का बहुत बड़ा महत्व है, जो न केवल आध्यात्मिकता और धर्म के क्षेत्रों में है, बल्कि कला, कविता एवं साहित्य क्षेत्रों में भी है और साथ ही विज्ञान, नीति शास्त्र और दर्शन तथा ज्ञान की प्रणालियों में भी है। उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि संस्कृत में किसी भाषा के सबसे बड़े साहित्यों में एक सन्निहित है और यह विश्व के तीन बड़े धर्मों के पवित्र साहित्य को समावेशित करता है।
उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा कि मौखिक से लिखित रूप की तरफ रूपान्तरण से संस्कृत का पूरे दक्षिणी एवं पश्चिमी एशिया में बेहद तेज गति से विस्तार हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि थाई एवं अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई भाषाओं की संस्कृत में मजबूत जड़ें हैं, जो संस्कृत के साथ उनके अतीत के संबंध की मजबूत जड़ों को परिलक्षित करता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यूरोप और अमरीका में भी संस्कृत में छात्रवृत्ति प्रदान करने की एक लंबी और मूल्यवान परम्परा रही है।
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