आदरणीय सभापति जी , आदरणीय सभी सांसद महोदय,
अभिभाषण पर विस्तार से चर्चा हुई। करीब 30 माननीय सदस्यों ने इस चर्चा में हिस्सा लेकर करके अपने अनुभव का अपने ज्ञान का, देश को लाभ पहुंचाया। श्री जगत प्रकाश नड्डा जी, श्री अरूण जेटली जी, श्री गुलाम नबी आजाद जी, डॉ. विजयलक्ष्मी जी, प्रमोद तिवारी जी, श्रीमती रजनी जी, श्रीमान देसाई, श्री शरद यादव जी, श्री गोपाल पटेल, सीताराम जी, डी राजा जी, के केशोराम जी, कई सारे नाम हैं, सभी महानुभावों ने सदन को, और देश को लाभान्वित किया है।
राष्ट्रपति जी के अभिभाषण में एक बात जो कही गई थी जिसका इतना सकारात्मक प्रभाव इतना तुरंत होगा ये बात हम सबको प्रसन्न करती है। राष्ट्रपति जी ने कहा था सदन चलना चाहिए, सदन में संवाद होना चाहिए और हम सभी सदस्यों ने राष्ट्रपति जी की बात को शिरोधार्य माना और सदन को सभी ने बहुत ही सुचारू रूप से सबने मिला करके चलाया और इसके लिए मैं विशेष रूप से विपक्ष के सभी बंधुओं का मैं आभार व्यक्त करना चाहूंगा कि उन्होंने इस काम को आगे बढ़ाया और राष्ट्रपति जी के अभिभाषण का ये जो असर है कि मैं समझता हूं कि अपने आप में गौरव देने वाला है। मैं राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर धन्यवाद करने के लिए खड़ा हुआ हूं, लेकिन सदन के साथ-साथ सदन के माननीय सदस्यों से भी इस बात से आग्रह करना चाहूंगा। एक तो खुशी की बात है कि सदन में सभी सदस्य सक्रिय हैं। अपने-अपने विचारों के लिए आग्रही हैं, करीब 300 के करीब Amendments आए हैं और हर Amendments का अपना महत्व भी है। लेकिन मैं सबसे आग्रह करूंगा कि हम राष्ट्रपति जी के wisdom पर भरोसा करते हुए समय की सीमा में जितने विषय आ सकें आ सके, इसका मतलब यह नहीं कि वो महत्व के नहीं हैं और इसलिए राष्ट्रपति पद की गरिमा और उनके wisdom पर भरोसा करते हुए मैं सभी आदरणीय सदस्यों से प्रार्थना करूंगा कि वे अपने संशोधन को वापस करके राष्ट्रपति जी के अभिभाषण को सर्वसम्मति से धन्यवाद प्रस्ताव हम पारित करें जो कि अच्छी परंपरा जारी रहे। हम सबने देखा होगा कि कल रात के बारह बजे तक लोकसभा का सत्र चला।
दो दिन पूर्व यह सदन भी देर शाम तक बैठा था। आम तौर पर इतने घंटे काम करने के बाद थकान महसूस होती है, लेकिन मैं उल्टा अनुभव कर रहा था, जिन –जिन सदस्यों से मेरा मिलना हुआ बात करने का मौका मिला देर रात बैठने के बाद भी वे अत्यन्त प्रसन्न थे, अत्यंत संतुष्ट थे, अत्युन्त आनंदित थे क्योंकि एक लंबे अर्से के बाद अपने पास जो कुछ कहने की बातें थी, अपने क्षेत्र की बातें थी, समस्याएं थी उसको इस पवित्र Forum में वो जी भर के कह पाए।
ये अवसर उनको मिला है उनके चेहरे की जो प्रसन्नता है, ये सदन चलने के कारण संभव हुआ है| वरना पिछली बार सदन में जैसे Question hour मैं मानता हूं कि Question hour अपने आप में एक सदस्यों का अपनी संपत्ति है और राष्ट्र के महत्वपूर्ण Issues पर सरकार को कठघरे में खड़ा रखना, executives को अकाउंटेबल बनाना, उनके लिए सवालिया निशान खडा़ करना।
मंत्रियों को भी हर प्रकार से सजग रखने के लिए भी सबसे बड़ी ताकतवर जगह है तो वो Question hour है। लेकिन हमने देखा कि पिछली बार सदन न चलने के कारण स्टार Question 269 थे, लेकिन सात को अवसर मिला और करीब 42 घंटे हमारा इस हल्ला बोल के अन्दर आहुत हो गया। उसके पूर्व के सत्र में करीब 270 इन्हीं सदस्यों के द्वारा पूछे गये स्टार Question थे, सिर्फ छह चर्चा में आए। करीब-करीब हमारे 72 घंटे इस माहौल के अन्दर आहुत हो गये।
इस बार हमारे wisdom में हमारे अनुभव ने, हमारी जिम्मवारियों ने, हमें बचा लिया और मान्य सदस्यों के सवालों के जवाब देने के लिए मंत्रियों को देर रात तक तैयारियां करनी पड़ रही हैं। executives को हिसाब देने के लिए सजग रहना पड़ा रहा है और यही लोकतंत्र की ताकत है और इस ताकत को मैं समझता हूं कि हम जितना तवज्जो दें उतना कम है। एक बात जरूर है मृत्यु को एक वरदान है और मृत्यु को ऐसा वरदान है मृत्यु कभी बदनाम नहीं होता। कभी मृत्यु पर आरोप नहीं लगते। कोई मरे तो ये कैंसर से मरा है, आरोप कैंसर पर जाता है। कोई मरे तो ये अकस्मात मरा है तो अकस्मात पर आरोप जाता है मृत्यु पर नहीं जाता है। बड़ी आयु में मरे तो वे उम्र के कारण मरे हैं, मृत्यु को कभी दोष नहीं आता। मृत्यु कभी बदनाम नहीं होती।
कभी-कभी ऐसा लगता है कि कांग्रेस को ऐसा वरदान है... वरदान इस अर्थ में है कि अगर हम कांग्रेस की आलोचना करें तो आपने मीडिया में देखा होगा कि विपक्ष पर हमला, विपक्ष पर आरोप, कभी ये नहीं आता है कि कांग्रेस पर हमला, कांग्रेस पर आरोप| हम अगर शरद जी के खिलाफ कुछ कहें, मायावती जी के खिलाफ कुछ कहें तो अखबार में आएगा, टीवी में आएगा कि बीएसपी पर हमला, जेडीयू पर हमला, शरद जी पर हमला, मायावती जी पर हमला लेकिन कांग्रेस एक ऐसी है जब भी हमला हो तो विपक्ष पर हमला। कभी कांग्रेस को बदनामी नहीं मिलती और ये अपने आप में बड़ा गजब का विज्ञान है। अब वो तो यही है हमारे सारे साथी सोचेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है।
यहां पर हमारे विपक्ष नेता ने चर्चा प्रारंभ की थी तब मैं यहां पर उपस्थित था। हमारे नड्डा जी ने Sea change कहा, तो हमारे गुलाम नबी जी ने थोड़ा माहौल हल्का करने का इरादा होगा उनका तो इरादा गलत नहीं होता। लेकिन चेन्नई का उदाहरण दे दिया। वो एक संकट था। मानवीय दृष्टि से वो दर्दनाक घटना थी उसको इस Sea change से जोड़ करके मजाक करने से उनकी पीड़ा में हम थोड़ा मैं समझता हूं कि अच्छा नहीं किया।
यहां एक विषय ये भी आया कि राजस्थान और हरियाणा में, जो उन्होंने चुनाव में कुछ नियम बनाएं हैं जिसको सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी। लेकिन हमारी democracy में qualitative चेंज लाने का जो प्रयास है उसको कुछ राजनीतिक रंग लाने का प्रयास चल रहा है। मतभेद हो सकता है, लेकिन मैं चाहूंगा कि जो लोग इतने बड़ी प्रखरता के साथ कहते हैं जो अशिक्षित रहे उनका क्या।
मैं खास करके गुलाम नबी साहब से और उनके साथियों में आग्रह करूंगा कि जो पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं कम से कम 30 % लोगों को अनपढ़ लेागों को टिकट दें, बिलकुल अनपढ़ तो वो जो कह रहे हैं तो उसमें उनका क्या commitment है पता तो चलेगा। अनपढ़ की इतनी चिंता है होनी भी चाहिए। लेकिन मैं एक अनुभव शेयर करता हूं। मैं गुजरात में जब था तो हर वर्ष, हर वर्ष जून महीने में 13, 14, 15 जून कन्या शिक्षा को ले करके बेटियों को पढ़ाने के लिए ग्रुजरात में एक कैम्पेन चलाता था, campaign चलाता था और गुजरात में मई जून में 40-45 तापमान रहता है। पूरी सरकार गांव जाती थी मैं खुद जाता था। तीन-तीन दिन में गांव में रहता था और बेटियों को पढ़ाओ इसके लिए campaign चलाता था। स्कूल 15 जून से शुरू होते थे तो उसके पहले एडमिशन्स के लिए लगते थे। वहां मैं मातृ सम्मेलन भी करता था। एक गांव में मैं गया । मैंने ऐसे ही पूछा कि आप बता ही दें कि आप में से अनपढ़ कितने हैं। तो कोई 40 साल 45 साल और 50 साल की महिलाओं ने हाथ ऊपर किया कि हम पढ़े लिखे नहीं हैं। लेकिन पांच छह महिलाएं ऐसी थी जिनकी उम्र 80-85 थी। मैंने पूछा आप पढ़े लिखे हैं, तो बोले ये हमारी बहु अनपढ़ है हम पढ़े लिखे हैं। कैसे तो बोले हम जो हैं गायकवाड स्टेट के नागरिक हैं, आजादी के पहले की बात है और गायकवाड स्टेट में ये नियम था कि अगर बेटी को नहीं पढ़ाते हैं तो एक रूपये दंड होता था और बोले इसके कारण हम पढ़े लिखे हैं। लेकिन बाद में स्वतंत्रता आई सरकारें बदल गईं तो बहू हमारी अनपढ़ है। तो ये जो अनपढ़ का कारण है वो आजादी के बाद जो हमारी कमियां रहीं है उससे और इसलिए हमने चिंता शिक्षा की करने की जरूरत है ताकि ये जो कठिनाई है उस कठिनाइयों से हम बाहर आ सकते हैं।
राष्ट्रपति जी ने कहा है कि पहले आकाशवाणी में आकाशवाणी रेडियो पर एक कार्यक्रम चलता था और गुजराती में जो शब्द था मुझे मालूम नहीं है कि हिन्दी में वो ही शब्द है क्या। बिसराते सुर यानी जो भूले बिरसे गीत हैं उनका कार्यक्रम आखिरी आखिरी तो अब कुछ लोगों का ये tenure पूरा हो रहा है तो स्वाभाविक है कि आखिर आखिर में कुछ कहें। तो ये भूले बिसरे सुर आखिर में सुनाई तो देने चाहिए।
सभापति जी, एक प्रकार से upper house है हमारे यहां कहा जाता है - महाजन ये न जतापन था। जहां महापुरूष चलते हैं लोग उसके पीछे चलते हैं। इस सदन में महाजन बैठे हैं। इस सदन से जो होगा जिस प्रकार से होगा उसका असर लोकसभा में होगा। उसका असर assembly होगा। कहीं कहीं कॉरपोरेशन सिटी में भी हो रहा है और इसलिए हम ऐसा कैसा करें ताकि नीचे तक वो माहौल बने जो लोकतंत्र को पुष्ट करे।
देश हमारे कई बिल पारित हो, इसका इंतजार कर रहा है। जीएसटी की चर्चा हो रही है बाकी बिल की चर्चा मैं नहीं कर रहा हूं। बहुत बड़ी मात्रा में अब जो जनप्रतिनिधि चुन करके आए हैं उन्होंने तो इसको स्वीकार कर लिया है। लेकिन राज्यों के जो प्रतिनिधि हैं वहां। अब ये जगह ऐसी है जो अपर हाऊस हमारा, एक chamber of ideas है। यहां देश को मार्गदर्शन मिलेगा, दिशा मिलेगी और इसलिए दोनों सदनों के बीच तालमेल होना बहुत जरूरी है। दोनों सदन वस्तुत: उसी structure के भाग हैं और सहयोग एंव सामंजस्य की भावना की किसी भी कमी से कठिनाइयां बढ़ेगी और हमारे संविधान के उचित रूप से कार्य करने में बाधा खड़ी होगी। ये चिंता पं0 जवाहर लाल नेहरू जी ने जताई थी। मैं आशा करता हूं कि हम पंडित जी की इस चिंता को महत्व दें और हम कोशिश करें कि हमारे यहां यह जो सारे पेंडिंग बिल हैं, इस बार सदन चल रहा है। एक अच्छे माहौल में चल रहा है। तो हम चीजों को अगर पारित करें तो देश को गति देने में, ये महाजनों का ग्रो है, वरिष्ठ का गृह है। वो बहुत बढ़ा role play कर सकता है। इसलिए मैं आग्रहपूर्वक प्रार्थना करता हूं, सभी मान्य सदस्यों से जो लोकसभा में जो बिल पारित हुए हैं। उनको हो सके उतना जल्दी पारित करके हम देश को गति देने में भूमिका अदा करें।
इस सरकार में राष्ट्रपति के अभिभाषण में कुछ बातें आई हैं। ये तो सही है कि देश आजाद हुआ है, सरकारें बनी हैं। लंबे अरसे तक सत्ता भोगने का अवसर मिला है, सत्ता में रहने का अवसर मिला है। कुछ काम करने का अवसर मिला है और कुछ समय पहले से थोड़ा-थोड़ा बदलाव भी शुरू हुआ है, धीरे-धीरे। इस समय हम लोगों को मौका मिला है और ऐसा तो नहीं है कि कोई काम करना नहीं चाहता, हर कोई करना चाहता है। लेकिन कभी-कभार सवाल यह होता है कि हम इतना बड़ा देश है, इसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो, होती है, चलती है, इस प्रकार से करेंगे, तो हम बहुत पीछे चले जाएंगे। हमें incremental improvement से हटकर के एक quantum jump की ओर जाना बहुत जरूरी है और इसलिए शक्ति भी जरा ज्यादा लगानी पड़ती है और शक्ति जोड़नी भी पड़ती है। तो उसकी दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।
हमने एक बल दिया है good governance पर, और जब मैं good governance की बात करता हूं, सुशासन की बात करता हूं तो उसकी पहली शर्त होती है transparency. हम यह भली-भांति जानते हैं कि इसके पूर्व, हमारे आने से पहले देश और दुनिया में, सही और गलत, इसका अपवाद हो सकता है। लेकिन यह माहौल बना हुआ था, विश्वास टूट चुका था। आशंका के दायरे में हम दबे हुए थे और सब ओर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, इन चीजों ने हिन्दुस्तान के मन को झटक दिया था। दुनिया में भी इसके कारण भारत की छवि को गहरा नुकसान हुआ था। देश में विश्वास पैदा करने के लिए आवश्यक है और लोगों की जिम्मेवारी भी है कि transparency, policy driven government , individual के beam पर सरकारें नहीं चल सकती। सरकार नीतियों के आधार पर चलनी चाहिए, इस पर हमारा बल रहा है।
पिछले दिनों चाहे कोयले की चर्चा हो, स्पेक्ट्रम की चर्चा हो, न-जाने क्या-क्या बातें उठी, अब तो मामले सारे कोर्ट में भी पड़े हुए हैं। लेकिन हमने transparency पर बल दिया है। उसका परिणाम यह है – कोयला auction में हम गए 3.33 लाख करोड़, स्पेक्ट्रम में गए 1 लाख करोड़, हम एफएम रेडियो में गए। अभी-अभी चल रहा है। शायद आप लोगों को ज्ञान होगा 6 अन्य minerals का और अभी-अभी auction में जो 18 हजार करोड़ रुपया cross कर गया। ये एक कोशिश हमारी कि transparency और मैंने उसके लिए उदाहरण नहीं लिए।
अभी-अभी Forbes magazine, उसने एक बात कही है। हमने जो auction की परंपरा शुरू की है, उसके विषय में Forbes magazine कहता है – “India has just conducted its first auction of a Gold mine. This is exactly the right way to allocate the exploration and exploitation rise of such a natural resources. This is another one of those steps along the road to India coming the much wealthier country it should be”.
अब वो जो Gold mine कहते हैं, उनकी पश्चिम की दुनिया में इनके लिए, कोयला वगैरह सबको वो Gold mine के रूप में माना जाता है। उस अर्थ में वो Gold mine लिखा है। हमारे यहां कोई सोना की खदान ही नहीं दी गई है। Forbes magazine ने आगे एक जगह पर अच्छी बात कही है, हमने जो प्रयास किया है उस पर उन्होंने कहा है। एक ही वाक्य मैं अलग से पढ़ना चाहूंगा, This is the way this matter should be handeled . मैं समझता हूं इसमें काफी कुछ आ जाता है।
दूसरा पहलू है good governance का accountability. हमें यह मानकर चले कि कुल मिलाकर के जो deterioration आया है उसमें हम खबरों की speed से चलते चले जा रहे हैं, पीछे की चीजें छूटती चली जा रही हैं। खबरें आती हैं जाती हैं, घटनाएं आती हैं जाती हैं, accountability का विषय छूट जाता है। हमने कोशिश की है कि accountability पर बल दिया जाए। मैं लगातार इन दिनों Infrastructure के review कर रहा हूं। इस सदन के सभी माननीय सदस्यों को आश्चर्य होगा 10-10, 20-20 साल से हमारे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट लटके पड़े हुए हैं। या तो environment वालों ने रोक दिया होगा, कोर्ट-कचहरी ने रोक दिया होगा, या स्थानीय कोई body होगी छोटी, नगरपालिका वो रोककर के बैठ गई होगी। रुका हुआ है, क्यों रुका हुआ है, कोई देखता नहीं, पूछता नहीं, इसी कारण, कभी financial कारण भी रहे होंगे लेकिन 10-10, 20-20 साल से रुके हुए प्रोजेक्ट। मैंने पिछले दिनों करीब 300 प्रोजेक्ट का खुद review किया और उसकी worth है करीब 15 लाख करोड़ रुपया। मैं इस सदन को नम्रतापूर्वक कहता हूं कि वो सारे छोटे-छोटे संकटों में फंसे हुए, ये 15-15, 20 साल पुराने stalled projects आज चालू हो गए है, गति बढ़ रही है।
Good governance का तीसरा पहलू होता है – decentralization. इतना बड़ा देश हम centralized mechanism से नहीं चला सकते। जितनी बड़ी मात्रा में decentralize करेंगे और इसलिए सरकार ने नीतिगत रूप से decentralize करने की दिशा में नीतिगत कदम उठाए हैं जैसे environment. हम environment की हर permission को दिल्ली ले आए। एक दफ्तर में ले गए, एक व्यक्ति के पास ले गए और क्या परिणाम आया हम जानते हैं, क्या-क्या बातें सुनी गई, क्या-क्या बातें कही गई, किस पर क्या-क्या लगा सब मालूम हैं। हमने 10 regional offices को strengthen किया ताकि उनको वहां की समस्या की समझ है, वो जानते हैं इस चीजों को, उसको हमने किया। कुछ चीजें सरकार की, मैं तो हैरान हूं, एक गांव के बीच में से रेल जा रही है। इधर से पानी उस तरफ ले जाना है तो पाइपलाइन डालने में, पचासों permissions में वो अटकें पड़े हुए थे और बिना पानी को एक इलाका तरसता था। bridge बन गया है, दोनों तरफ road बनाना है, अटका पड़ा है। कभी दोनों तरफ road बन गए है, रेल वाले ऊपर bridge डालने के लिए permission नहीं दे रहे हैं, ऐसी छोटी-छोटी चीजें। हमने रेल, road, पाइपलाइन, बिजली transmission, इसके लिए केन्द्र के पास आना ही जरूरी नहीं है, सरकार ने व्यवस्था कर दी, वहीं पर हो जाएगा। इतना ही नहीं, हमने राज्यों के environment clearance के rights बढ़ा दिए, राज्यों को अधिकार ज्यादा दे दिए ताकि वो भी, हम जितने जिम्मेवार है, उतने भी राज्य के लोग जिम्मेवार है और वो कोई देश को बर्बाद करना नहीं चाहते।
अब जैसे sand. आज हमारे यहां नदी में बालू, housing constructions में से कितनी। हर नदी दिल्ली तक इंतजार करती है कि permission मिले। हमने इसको राज्य नहीं district level पर दे दिया, district authority उस पर निर्णय करेगा और वो तय करेगी। Online प्रक्रियाओं को लोग देख सकते हैं। पहले रेलवे के टेंडर की सारी प्रक्रिया यहां होती थी। आज हमने उसको zonal general manager के under में डाल दिया, टेंडर प्रक्रिया वही से चल रही है, गति से चल रही है। पहले एक 300 करोड़-500 करोड़ के प्रोजेक्ट भी cabinet approval के लिए आते थे, इंतजार करना पड़ता था। हमने तय कर दिया कि वो ministry करेगी। एक हजार करोड़ से ऊपर होगा तभी cabinet में लाना है। decentralization के द्वारा इसको आगे बढ़ाने का प्रयास किया।
Good governance की एक महत्वपूर्ण बात होती है effective delivery. अब जन-धन account की यहां चर्चा हो रही है। हमारे माननीय विपक्ष नेता जी ने भोपाल के अच्छे उदाहरण दिए। बहुत आभारी हूं मैं कि एक जो विपक्ष ने करना चाहिए वैसा सटीक काम उन्होंने किया है। भोपाल जिले में किस गांव में कौन ‘जन-धन’ account से रह गया है और उसका recording तक करके ले आए। होना यही चाहिए तभी executive accountable बनेगी और ये सदन के सदस्यों का यही काम होता है। यह मुद्दा मेरी सरकार, तेरी सरकार नहीं होता है और मैं मानता हूं कि एक सही दिशा का यह प्रयास है। उसमें तथ्य क्या है, वो तो कल अरुण जी ने कह दिया। मैं तथ्य पर चर्चा नहीं करूंगा, मैं इस प्रयास को अच्छा मानता हूं। क्योंकि कभी-कभार नीचे से, व्यवस्था से खबर आएगी और मान लेते हैं, लेकिन विपक्ष सजग रहा, देखा और कितनी मेहनत की है। सत्ता में इतनी मेहनत की होती तो ‘जन-धन’ account का काम मुझे करना ही नहीं पड़ता। बाल की खाल उधेड़ी। लेकिन फिर भी अच्छा किया। साहब आपने microscope लेकर के देखा। मोदी कह रहा है जन-धन होगा, देखो यार कहीं तो होगा कोई कोने में। बहुत microscope लेकर के निकले लेकिन साहब आप इतने साल microscope लेकर के नहीं, अगर binocular से भी देखकर के काम किया होता तो आज यह मेहनत करने का मेरे जिम्मे नहीं आता। आज microscope लेकर के घूम रहे हो, अच्छा होता जब सत्ता में थे binocular से भी देखकर के काम को निपटाने का प्रयास किया होता। मेरे कहने का तात्पर्य यही है कि हम effective delivery पर बल दें वरना कभी जो last mile delivery, हमारे यहां जो लोग सरकार में रहे उनको मालूम है। हमें उसमें जितना ही हम पुरुषार्थ करे, हमें करना चाहिए।
हमारे सीताराम जी ने एक विषय छोड़ा था। उन्होंने कहा था कि ये targeted subsidy के नाम पर आप subsidy कम कर रहे हैं। वैसे वो उनके nature का विषय नहीं है लेकिन क्यों बोल दिए मुझे समझ में नहीं आता है। लेकिन हो सकता है politics में कुछ चीजें करनी भी पड़ती हैं। मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं चंडीगढ़ शहर का। चंडीगढ़ शहर में ज्यादातर घरों में बिजली है, ज्यादातर घरों में गैस कनेक्शन है। उसके बावजूद भी चंडीगढ़ में 30 लाख लीटर केरोसिन जाता था। जबकि उनका कोई उपयोग उनको नहीं था। कुछ परिवार थे जिनके पास गैस नहीं था, शायद उनको उपयोग होगा। 30 लाख लीटर केरोसिन। हमने सोचा कि भई जरा हम JAM योजना को लागू करे। सर्वे किया, आधार का उपयोग किया, गैस कनेक्शन का डाटा इकट्ठा किया। कुछ परिवार रह गए हैं जिनके पास गैस कनेक्शन नहीं है। हमने एक अभियान चलाया है। आने वाले कुछ दिनों में शायद पूरा हो जाएगा। लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि 30 लाख लीटर केरोसिन जो कि जाता था और धन्ना सेठों के द्वारा बाजार में चला जाता था, पूंजीपतियों के पास चला जाता था। ये पूंजीपति लोग उसका black marketing करते थे, डीजल में mix करते थे, environment को बर्बाद करते थे, ये targeted subsidy का परिणाम यह है कि यह जो धन्ना सेठ या पूंजीपति लोगों के हाथ में 30 लाख लीटर केरोसिन जाता था बहुत तो बंद हो गया, बाकी भी अब बंद हो जाएगा और इसके कारण देश की करोड़ों रुपयों की subsidy बचेगी।
तीसरा, देश को import करने में भी राहत मिल जाएगी। कहने का हमारा तात्पर्य यह है कि हम जब technology के माध्यम से इस काम को जो हम कर रहे हैं, इस काम के संबंध में subsidy सही व्यक्ति को मिले, नियम में जितनी मिलनी चाहिए उतनी मिले, समय पर मिले, उस दिशा में हमारा एक प्रयास है। यह रुपए बचाने का खेल नहीं है। एक व्यवस्था में transparency लाना नहीं, leakages बंद करने की, दलालों को निकालने का एक उत्तम प्रकार का प्रयास है। उसमें भी कुछ कमियां है तो ठीक करनी है और आप लोगों का उसमें सहयोग मिलेगा, कहीं से कोई जानकार मिलेगी तो ठीक करने में सुविधा बढ़ेगी। तो मैं आश्वस्त कर देता हूं सबको कि ऐसी कोई बात ध्यान में आए तो जरूर सरकार के ध्यान में लाइए ताकि हम इसको कर पाए।
एक विषय है, माननीय हमारे गुलाब नबी साहब ने विषय निकाला – skill development का। आपने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने इसको शुरू किया था, वगैरह-वगैरह। वैसे हमारे देश में skill परंपरागत है लेकिन हर सरकार ने किसी न किसी रूप में प्रयास किया है। अब बात कहा जाकर के अटकती है। अब जैसे मान लीजिए आज हम गंगा सफाई करते हैं तो स्वाभाविक से आपसे आवाज उठेगी, ये तो हमने शुरू किया था। सही बात है। श्रीमान राजीव गांधी जी ने उस पर बल दिया, शुरू किया।
अब सवाल यह उठता है कि शुरू किया, उसका credit लेने के उत्साह में यह भी तो जवाब देना पड़ेगा कि 30 साल के बाद भी गंदी क्यों हैं, अगर शुरू किया था तो 30 साल के बाद गंगा गंदी क्यों हैं, क्या कमी रह गई? और इसलिए हर बार, ये तो हमारे समय हुआ था, ये उत्साह का अपना एक महत्व है। श्रेय लेने का प्रयास करने में कुछ बुरा है, ऐसा नहीं है, ये तो आपको मन करेगा। देखिए दुनिया में दो तरह के व्यक्ति होते हैं - एक वो जो कार्य करते है और दूसरे वे जो उसका श्रेय लेते है। आप इनमें से पहली तरह का व्यक्ति बनने का प्रयास करें क्योंकि इसमें competition बहुत कम है। यह बात श्रीमती इंदिरा जी ने कही थी। अब skill development. देखिए साहब 2008 में, मैं मानता हूं skill development पिछली सरकार में जो चला। उसमें एक skill की mastery आ गई और mastery थी कमेटियां बनाने और कमेटियां बिखरने की। उसमें mastery आ गई, skill development वो हुआ।
2008 में PM’s national council, National skill Development Coordination Board, National Skill Development Corporation फिर 2009 में National Policy on Skill Development, कमेटियां पर कमेटियां, कमेटियां पर कमेटियां और मीटिंगे नहीं होती थी। एक कमेटी की तो मीटिंग शायद ढाई-तीन साल के बाद अचानक एक कर ली गई थी लेकिन वो भी इसलिए कर ली गई थी कि अगली मीटिंग कब करेंगे। आखिरकार, इतनी सारी कमेटियों के बाद 2013 में यह तय कर दिया कि National Skill Development Agency बनाई जाए और बाकी सब दुकानें बंद कर दी जाए। साहब ये skill development का हाल था। Skill Development के विषय में आप अज्ञान नहीं थे, आपको ज्ञान था कि एक जरूरी है, देश में इतनी बड़ी संख्या में नौजवान है करना चाहिए। लेकिन कभी-कभार तो महाभारत याद आता है ज्ञानम न धर्मम नचे बिन प्रभुति। ज्ञान तो बहुत था लेकिन करना प्रवृत्ति नहीं थी। अब कौन-क्या ये मैं ज्यादा चर्चा नहीं करता।
वर्तमान सरकार के कार्यकाल में 2014 में हमने skill development एक अलग ministry बनाई। skill development scheme के लिए common norms तय किए। skill initiatives, consistent quality हासिल करने पर बल दिया गया। NSDC के तहत हमने डेढ़ साल में ढाई गुना उसमें बढ़ोतरी की। Industrial training institutions (ITI) हमने डेढ़ साल के भीतर-भीतर 20% उसमें इजाफा किया। पिछले दो वर्ष में क्षमता 15 लाख 23 हजार सीटों से बढ़कर के 18 lakh 65 thousand कर दी गई, 20% हमने बढ़ोतरी की। 1 लाख 70 हजार प्रतिवर्ष जो तय होते थे उसमें हमने 53 thousand और जोड़ दिए। 10th और 12th उसमें vocational education करीब बारह सौ तेरह सौ स्कूल में चलता था। आज हमने उसको एकदम से quantum jump लगाकर के तीन हजार पहुंचा दिया। डेढ़ लाख अतिरिक्त छात्रों का लाभ उसके लिए हुआ। International mobility , एक बात मानकर के चलें कि 2030 वो समय आएगा, जब दुनिया की नज़र हिन्दुस्तान के workforce पर रहने वाली है।
हमने अभी से global standard का workforce तैयार करने की दिशा में हमें काम करना चाहिए। International mobility पर हमें बल देना चाहिए और उसके लिए ऑस्ट्रेलिया और UK के जो standards है उसको match होते हुए, कामों को हमने शुरू किया है और भी requirements के अनुसार उस standard को लेने की दिशा में हम काम करना चाहते हैं।
Apprenticeship, किसी न किसी कारण से हमने apprenticeship को एक ऐसी अवस्था बना दी कि सब उद्योगकार, व्यापारी दरवाजे बंद करके बैठ गए, किसी को घुसने ही नहीं देते और किसी को भी नौकरी चाहिए तो लोग पूछते है experience है क्या? Experience लेने जाता है तो दरवाजा बंद है। जब तक हम apprenticeship को बल नहीं देते, हमारे नौजवानों को experience नहीं मिलेगा। experience नहीं मिलेगा तो उनके लिए job opportunity नहीं होगी और उसको ध्यान में रखते हुए हमने apprenticeship के trainee जो पहले 3 लाख 12 हजार थे। सवा साल के भीतर-भीतर 2 लाख 70 हजार और उसमें जोड़ दिए, हमने वो व्यवस्था की है।
पहले हमारे यहां target होता था - कितने बच्चों को तैयार किया। उसी को पूरा करने की दिशा में प्रयास था। हमने market में requirement क्या है, किस प्रकार के syllabus की जरूरत है, किस प्रकार की training की जरूरत है, उसका सर्वे किया और according to that हमने skill develop किया ताकि job के साथ उसको connect किया जाए और उसको उसका काम मिल जाए और उस दिशा में हमने प्रयास किया है। अब मैं देख रहा हूं कि पिछले दिनों हमारे देश में manufacturing को बल तो देना ही होगा। हम सब जानते हैं कि कोई भी सरकार हो, भाषण के लिए हम कुछ भी कहे लेकिन देना पड़ेगा। इसके कारण हमने FDI पर बल दिया, FDI में बढ़ोतरी हुई, 48% करीब। हमने 2015 में electronic manufacturing में छह गुना बढ़ोतरी हुई है। 2015 में software export सबसे ज्यादा हुआ है। हमारे major Ports 2015 में सबसे ज्यादा handling हुआ है। 2015 में सबसे ज्यादा कार उत्पादन हुआ है। 50 नई मोबाइल कंपनियां manufacturing के लिए आई है। यह सारी बातें skill और रोजगार के साथ जुड़ने वाली है और skill और रोजगार की दिशा में ये काम करने वाले हमारे प्रयास है और उसका परिणाम यह होगा कि हमारे देश में रोजगार की संभावनाएं बढेंगी।
Ease of doing business में 12 rank हम quantum jump लगाया है। हम ऊपर गए है। World Economic Forum में Global competitive index में हम 16 स्थान ऊपर गए है। Moodys ने जो up gradation दिया हमारे लिए, positive दिया है, जो global environment में भारत की साख को बढ़ाता है, भारत की ताकत की पहचान कराता है। Employment की चर्चा skill development में हो, manufacturing sector में बढ़ावा हो, एक रोजगार के लिए मानदंड के रूप में एक institute को हमने मान्यता मिली हुई। Monster Employment Index, ये online recruitment के आधार पर analysis करता है। January 2016 में index 229 था। यह index 2014 में सिर्फ 150 था और आज आप देख सकते हैं 150 से बढ़कर के 229 index को हम प्राप्त कर गए है। हमने रोजगारी को बढ़ावा देने के लिए जो micro and small industry है उसको हमने Tax के अंदर सुविधाएं दी हैं। Start Up को बल दिया है। तीन साल के लिए टैक्स में हमने रियायत दी है ताकि नौजवानों को Start Up के लिए मौका मिले। मुद्रा बैंक के द्वारा करोड़ों-करोड़ों लोगों को हमने धन दिया है, जो पुराने थे उन्होंने expansion किया है। expansion के कारण उसको एक-दो लोगों को और रोजगार देने का उसको अवसर मिला है और इसमें भी ज्यादा SC, ST और women हैं | मुद्रा के लाभार्थी सबसे ज्यादा SC, ST, OBC and women है। नए उद्योग जो लगेंगे ही, उसके लिए हमने टैक्स को 25% पर रख दिया है और कोई benefit अगर लेना चाहता नहीं है तो ये benefit मिलेगा।
एक महत्वपूर्ण निर्णय इस बजट में आपने सुना होगा। हम जो पूंजीपतियों की चर्चा करते हैं। जो लोग first UPA में सरकार का समर्थन करते थे और वो जो पूंजीपतियों का विरोध कर करके गाड़ी चलाते रहते हैं। आप देखिए हमारे देश में बड़े-बड़े मॉल हो, वो तो सात दिन चल सकते हैं, लेकिन गांव के अंदर एक छोटा दुकानदार हो, वो सात दिन खुली नहीं रख सकता है। हमने बजट में इस बार घोषित किया है कि छोटे दुकानदार भी सात दिन चला सते हैं, देर रात चला सकते हैं। इसका परिणाम यह आने वाला है कि हर छोटा दुकानदार भी एक न एक काम करने वाले को रखेगा, एक-एक दुकान पर एक नए व्यक्ति के रोजगार की संभावना होने वाली है। उस दिशा में महत्वपूर्ण काम मैं समझता हूं आने वाले दिनों में रोजगार की दिशा में होने वाला है।
चेयरमैन श्री, मैं अब थोड़ी किसानों के संबंध में बात करना चाहता हूं। जब हमने कहा कि क्यों न देश जिसमें किसान हो, progressive किसान हो, राज्य सरकारें हो, केन्द्र सरकारें हो, हम सब मिलकर के, हमने बहुत जिम्मेदारी के साथ इन शब्दों का प्रयोग किया हुआ है। सब मिलकर के ये लक्ष्य क्यों न तय करे कि 2022 में किसान की income double हो और मैं हमारे मनमोहन सिंह जैसा तो अर्थशास्त्री नहीं हूं लेकिन जिस अवस्था में से पला-बढ़ा हूं तो गरीब किसानों को नजदीक से देखा है और इसलिए मुझे वो बढ़ा ज्ञान तो नहीं है लेकिन छोटी-सी चीजों का पता है। अगर हम सही दिशा में प्रयास करे तो परिणाम आएगा। मैं एक हमारे देश में इस विषय के जानकार है, श्रीमान एम. एस. स्वामीनाथन, उनका एक latest article का quote मैं कहना चाहता हूं “seeds have been sown for agricultural transformation and for attracting and retaining youth in farming. The dawn of a new era in farming is in sight.”
अब किसान की आय दोगुना हो सकती है कि नहीं हो सकती है। किसान मतलब, अगर जो हम soil health card के काम को लेकर के चले है, उसको हम सफलता से लागू करे और किसान soil health card के advices के अुनसार अपनी जमीन का उपयोग करना शुरू करे। productivity बढ़ सकती है, input cost कम हो सकती है। आज किसान की मुसीबत यह है कि पड़ोसी ने अगर लाल डिब्बे वाली दवाई डाल दी तो उसको भी लगता है कि मैं लाल डिब्बे वाली दवाई डाल दूं । पड़ोसी ने अगर पीले डिब्बे वाली डाल दवाई दी तो वो भी पीले डब्बे वाली दवाई डाल देता है। पड़ोसी ने इतने kg यूरिया डाल दिया तो वो भी। उसकी जमीन उसके लिए योग्य है कि नहीं है।
अगर हम कोशिश करें। हमारी agriculture universities, agriculture graduates ये सारे लोग इसमें लगे और soil testing का जो काम चला है, उसको अगर खेती के साथ सीधा-सीधा जोड़कर के हम आगे बढ़े परिणाम ला सकते हैं। दूसरी बात, हमारे यहां हम timber import करते हैं। अगर हम हमारे किसानों को जहां उसकी जमीन की सीमा समाप्त होती है वहां वो एक-दो मीटर जमीन बर्बाद करता है। बाड़ लगा देता है, एक मीटर इधर वाले की जाती है, एक मीटर उधर वाले की जाती है। अगर वो दोनों मिलकर के timber की खेती करें । पेड लगा दे तो 15-20 साल में permanent income का source बन सकता है और जमीन को कोई नुकसान नहीं होने वाला है। जमीन को अतिरिक्त फायदा होने वाला है। उस दिशा में काम कर रहे हैं। हम कृषि के साथ fisheries, poultry , animal husbandry, milk production, दूसरा value addition. Income बढ़ाने के लिए जरूरी नहीं है कि agro product ही बने. Value addition से, अभी हमने एक निर्णय कोका कोला कंपनी पर हमने दबाव डाला, उनसे बातचीत की, laboratory में testing करवाया। हमने आग्रह किया कि आप कोका कोला के अंदर 5% natural orange juice mix करिये और मुझे खुशी है कि अभी महाराष्ट्र government के साथ उनका agreement हुआ और विदर्भ के अंदर जो संतरा पैदा होता है वो संतरा अब कोका कोला के अंदर 5% मिक्स होगा तो विदर्भ के किसान का संतरा बिकने में कोई दिक्कत नहीं आएगी।
हमें value addition की दिशा में प्रयास करना होगा और इसलिए अगर आलू किसान बेचता है तो कम कमाई होती है लेकिन wafer बनाकर के बेचता है तो ज्यादा कमाई होती है। हरी मिर्च बेचता है तो कम कमाई होती है लेकिन लाल मिर्च का पाउडर बनाकर के बेचता है तो ज्यादा कीमत मिलती है। हम लोगों ने value addition पर बल देना शुरू किया है जिसके कारण हमारे किसान की income में बढ़ोतरी होना पूरी तरह लाजिमी है। उसी प्रकार से blue economy, हमारे जो सागर, जो हमारे fisheries में हमारे fisherman लगे हैं। हमारे समुद्री तट पर seaweed की खेती, पूरी संभावना है आज दुनिया में pharmaceuticals के manufacturing में base material के लिए seaweed बहुत बड़ी ताकत बनकर उभरा है। हमारे fisherman के परिवार समुद्री तट पर आराम से seaweed की खेती कर सकते है और वो seaweed की marketing और हमारे pharmaceuticals से हम tie up करे, हमारे fisherman की income भी हम बढ़ा सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है किहम जो सोचते हैं किagriculture sector में हम किसानों की आय बढ़ा नहीं सकते, ये निराशा का कोई कारण नहीं है। अगर हम वैज्ञानिक तरीके से, उसी प्रकार से National Agriculture Market, आज National Agriculture Market के द्वारा, e-platform के द्वारा, किसान अपने गांव में बैठकर के यह तय कर सकता है किअगर महाराष्ट्र के अंदर उसकी पैदावार की कीमत ज्यादा है, वहां बेच सकता है। 14 अप्रैल बाबा साहेब आम्बेडकर की जन्मजयंती पर यह सरकार इसको launch करने जा रही है। किसान अपनी जहां ज्यादा कीमत मिलेगी, वहां market में जाने के लिए उसको सुविधा मिलने वाली है।
दुनिया में honey का बहुत बड़ा market है। लेकिन भारत में हमारे कृषिक्षेत्र में honey bee का वैज्ञानिक तरीके से कोई प्रयास नहीं हुआ, registration तक available नहीं है। हमने इस पर बल दिया है।
अगर उस पर हमारा किसान काम करता है और हनी बी को बिगड़ने का सवाल ही नहीं होता है लंबे समय अर्से तक रहता है। हमारे किसान की इनकम में अतिरिक्त बढ़ोतरी कर सकता है। हमने किसान की income बढ़ाने के लिए और पहलुओं पर बल देने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं।
चैयरमैन श्री, यहां पर स्वच्छता की चर्चा हुई और ये कहा गया कि ये काम तो हमारे समय में भी चलता था। हमने किसी भी बात नहीं कही है। ये सब आप ही की देन है। हम कभी claim नहीं करते ये आप ही की देन है कि आज हमको दिन रात मेहनत करके स्कूलों में चार लाख टॉयलेट बनाने पड़े। आपने अगर बना करके दिया होता तो काम हमारा कम हो जाता और इसिलए कोई ये नहीं कहता कहने का तात्पर्य समस्याएं पुरानी हैं, समस्याएं नई नहीं हैं। समस्याओं के समाधान करने के प्रयास अभिरथ चले हैं। हर किसी ने अपने-अपने समय कुछ न कुछ जोड़ने का प्रयास किया है। उस समय की स्थिति के अनुसार available resources के अनुसार हमने भी एक प्रयास किया है और यह खुशी की बात है। देखिए 1986 में central rural sanitation programme आया था, तब से लेकर के। रिकॉर्ड पर यह चीजें available है। उसके बावजूद भी हम अभी तक परिणाम प्राप्त नहीं कर सके। परिणाम प्राप्त करना है तो जन आंदोलन खड़ा करना पड़ेगा ।
और मैं आज इस बात को संतोष के साथ कह सकता हूं कि आज स्वच्छता, ये जन आंदोलन बनने की दिशा में जा रहा है। हमारी संसद ने देश आजाद होने के बाद कभी भी स्वच्छता पर debate नहीं की थी। पहली बार इस देश में पार्लियामेंट ने दो-दो, तीन-तीन घंटे तक स्वच्छता पर चर्चा की। हो सकता है सरकार की आलोचना हुई होगी लेकिन कम से कम इस सदन के लोग, उस सदन के लोग इस बात पर sensitize हुए है किअब इसको ऐसे नहीं रहने देना चाहिए, बदलना चाहिए। एक अच्छा माहौल बन रहा है। हम सब उसको बल कैसे दे, उस दिशा में सोचना है। कोई दावा नहीं करता है किहम ही लाए।
हमारे बाद कोई आएंगे तो वो उसको improve करेंगे। उनके बाद कोई आएगा और improve करेंगे और हो सकता है स्थितिऐसी आए करना न पड़े और वो जन सामान्य का विषय बन जाए। लेकिन हमें करना होगा और जब तक हम इसको नहीं करेंगे। हमने अभी शहरों की एक challenging mode में competition शुरू की है। उसका परिणाम यह आया है Urban Development Ministry कर रही है। आज शहरों में उस शहर की elected body पर दबाव पड़ रहा है किभई उन तीन में तुम्हारा नाम क्यों नहीं है हमारे शहर का नाम क्यों नहीं है? मैं बनारस का MP हूं, बनारस के नागरिक municipality पर दबाव डाल रहे हैं किक्या बात है यह स्वच्छता के अंदर बनारस नज़र क्यों नहीं आ रहा? जनता का pressure बढ़ रहा है। ये बढ़ना चाहिए और मैं तो चाहता हूं आप भी जहां-जहां हो ये pressure बढ़ाइए। सरकार को मजबूर कीजिए। सभी elected bodies को मजबूर कीजिए। हम स्वच्छता को हमारे देश हित का एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम माने। महात्मा गांधी का जो सपना था, 2019 में पूरा करना, हम सबका दायित्व क्यों नहीं हो सकता।
इस सरकार उस सरकार का नहीं हो सकता है मेरे माननीय सभी सदस्यगण ये हम सबका होना है। मैं देख रहा हूं मीडिया हाऊस दुनियाभर के विषय में दुनियाभर के विषय में हमारी आलोचना करते हैं। सरकारों की आलोचना करते हैं। ये एक विषय ऐसा है कि देश का मीडिया पार्टनर बना है। कहीं न कहीं मीडिया के लोग इस काम को कर रहे हैं खुद कार्यक्रम कर रहे हैं। खुद उसको promote कर रहे हैं। इसको एक हम सबका कार्यक्रम बनाएंगे तो देश के और देश के Tourism बढ़ाने के लिए काम आएगा और स्वच्छता जो पूंजीपतियों का विरोध करते हैं, उनके लिए तो सबसे पहले करने जैसा काम है, क्योंकि WHO का रिपोर्ट कहता है, इंटर नेशनल एजेंसी का रिपोर्ट कहता है कि गंदगी के कारण गरीबी में जीने वाले परिवारों को सालाना average सात हजार रूपया दवाई में खर्च होता है। अगर ये उसकी बीमारी चली जाए इसके कारण कितनी बड़ी सेवा होगी।
मैं मानता हूं, ये काम ऐसा है जिन्होंने किया है उसे हम आगे बढ़ाए। जितना किया है उसको और अधिक करें। अभी मैं छत्तीसगढ़ गया था। मैंने एक मां के पैर छुए, आदिवासी मां, पढ़ी-लिखी नहीं 90 प्लस उम्र है। उस मां ने अपनी तीन बकरियां बेच करके टॉयलेट बनाया। उस गांव में वो पहली महिला थी जिसे टॉयलेट बनाया। हम लोगों के लिए इससे बडा़ inspiration क्या हो सकता है और इसलिए और इसलिए मैं चाहूंगा कि इसको सरकार कार्यक्रम, पक्ष का कार्यक्रम, ये सरकार वो सरकार की सीमाओं में न बांधें। उसको देशहित के लिए सोचें और उसको हम बनाएंगे तो मैं समझता हूं कि बहुत अच्छा होगा।
कल हमारे सीताराम जी, जो उनका बेसिक फिलॉस्पी है उसको कल प्रकट कर रहे थे कि इतने exemption हैं, इतना फलां, आंकड़ा कहां से लाए। वो तो भगवान जाने। हां, वो आंकड़ा ढूंढा मुझे मिला नहीं। मुझे बाद में दिखा देना जी, लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि मैं वो आंकड़े की बताना चाहता हूं। टेक्स exemption है। जरा हम देखें 10 हजार 350 करोड़ रूपये exemption उसमें दाल और सब्जी में, क्या हम उसका विरोध करेंगे। 5800 करोड़ रूपये exemption किसके लिए चीनी के लिए।
शरद जी जो आपके बगल में बैठे है बाद में समझा देंगे आपको। 19 हजार 120 करो़ड़ रूपये exemption किसके लिए। जम्मू कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड उनके उद्योगों के लिए। नार्थ ईस्ट के लिए, हम उसका भी विरोध करेंगे क्या ।
मैं समझता हूं कि कभी-कभार बारीकियों में जाएंगे तो हमें पता चलेगा कि हमारे जो इन बातों को ले करके आपको चिंता हो रही है। यही सरकार है, कल अरूण जी ने आपको विस्तार से बताया है finance की चर्चा होगी तो बताएंगे कि हमने टैक्स किस पर लगा रहे हैं और टैक्स से मुक्ति किसको दे रहे हैं। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा और इसके लिए। और जो चीजें हमें विरासत में दी हैं कभी आपने बाहर से समर्थन करके सरकारें चलाई उसने जो हमें विरासत में दी हैं। आज उसी को सफाई करने में हमारा दम उखड़ रहा है और इसलिए समाप्त करने से पहले एक मशहूर शायर निदा फाजली की जो आवाज है। अभी अभी उनका स्वर्गवास हुआ। उनकी बात कह करके मेरी बात मैं समाप्त करूंगा।
सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो।
सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो।
किसी के वास्ते, राहें कहां बदलती हैं,
किसी के वास्ते, राहें कहां बदलती हैं
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो, चलो
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो
यही है जिन्दगी , कुछ ख्वाब चाँद उम्मीदें
इन्हीं खिलोने से जो तुम भी बहल सको तो चलो |
सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो।
बहुत बहुत धन्यवाद