विश्व शौचालय दिवस
19 नवंबर पर पूर्वालोकन
डॉ़ बिन्देश्वर पाठक
ब्रांड अंबेसडर-स्वच्छ रेल मिशन
पचास साल से शौचालय और सफाई को लेकर जारी मेरे काम का एक ही मकसद रहा है, स्वच्छता की संस्कृति को बदलना। 1960 के दशक तक तो स्वच्छता को लेकर खास संस्कृति भी नहीं थी। इसका उदाहरण है कि जब भी कभी हमलोग किसी के यहां शौचालय को लेकर बात करने जाते थे तो लोगों का पहला सुझाव यह होता था कि पहले चाय पी लेते हैं, फिर शौचालय की बात करते हैं। पचास साल की कोशिशों का अब बदलाव नजर आने लगा है। अब लोग खुलकर शौचालय की बात करने लगे हैं। स्वच्छता की संस्कृति पर बात करने को लेकर कोई हिचक नजर नहीं आती। वैसे...
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