राजगीर में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का उद्घाटन



संस्कृति मंत्रालय तथा डीम्ड यूनिवर्सिटी नव नालंदा महावीर द्वारा आयोजित तीन दिवसीय “अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन” का उद्घाटन हुआ। बिहार के राजगीर इंटरनेशनल बौद्धिस्ट कांफ्रेंस में बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा तथा संस्कृति तथा पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने इस सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री एन के सिन्हा और नव नालंदा महावीर डीम्ड यूनिवर्सिटी के उप कुलपति श्री एम एल श्रीवास्तव भी मौजूद थे। इस अवसर पर बौद्ध भिक्षुओं द्वारा मंगला पथ का मंत्रोच्चारण भी किया गया।

अपने उद्घाटन संबोधन के दौरान दलाई लामा ने कहा कि सभी धार्मिक पंरपराओं की सच्चाई एक है जो कभी बदल नहीं सकती। इससे देश के साथ-साथ विश्व को भी प्यार और करुणा के माध्यम से शांति प्राप्त करने में मदद मिलेगी जो बौद्ध धर्म का प्रमुख सूत्र है। उन्होंने कहा कि हमें न केवल बुद्ध और उनकी शिक्षाओं के बारे में पढ़ना चाहिए बल्कि इसका अपने जीवन में प्रयोग और अनुभव भी लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंसा की तरह करुणा भी मानव का एक बुनियादी स्वभाव है। उन्होंने भावनाओं पर जोर देते हुए कहा कि हमारे अंदर जो नकारात्मक भावनाएं पैदा होती हैं उससे हम पीडित और बीमार हो जाते हैं। इसलिए हमें विपश्यना योग के माध्यम से मन को शुद्ध करना चाहिए।


डॉ. महेश शर्मा ने अपने भाषण में कहा कि नालंदा की पवित्र भूमि पर आने पर उन्हें अत्यधिक प्रसन्नता हुई है। उऩ्होंने कहा कि बुद्ध से संबंधित इस तरह के अधिकांश पवित्र स्थान उत्तर प्रदेश या बिहार में स्थित हैं। उन्होंने विश्व के सभी कोनों से आए हुए मेहमानों का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन सही मायने में भविष्य के लिए कुछ संदेश जरूर देगा।

संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री एन के सिन्हा ने धार्मिक गुरू तथा मंत्री महोदय और विश्व के 35 देशों से आए हुए प्रतिनिधियों का स्वागत किया। 

EVM की विश्वसनीयता के बारे में चुनाव आयोग का पूरा जवाब यहाँ पढ़िए


चुनाव आयोग ने यह पाया है कि गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पंजाब की राज्य विधानसभाओं के लिए हाल ही में हुए चुनावों के नतीजों की घोषणा के बाद कुछ राजनीतिक दलों ने ईसीआई-ईवीएम की विश्वसनीयता के खिलाफ आवाज उठाते हुए इन चुनावों के दौरान ईवीएम में छेड़छाड़ किये जाने का आरोप लगाया है। कोई विशिष्ट आरोप लगाये बगैर एक ज्ञापन 11 मार्च 2017 को राष्ट्रीय महासचिव, बीएसपी की ओर से प्राप्त हुआ है। ईसीआई ने 11 मार्च 2017 को ही इस ज्ञापन को खारिज करते हुए बीएसपी को विस्तृत जवाब दे दिया है। ईसीआई का जवाब www.eci.nic.in पर उपलब्ध है।

ईसीआई-ईवीएम का उपयोग शुरू किये जाने के बाद इन मशीनों में कथित छेड़छाड़ के बारे में इस तरह की कुछ चिंताएं पहले भी व्यक्त की जा चुकी हैं। उच्च न्यायालय/उच्चतम न्यायालय में भी इस तरह की चिंताएं जताई जा चुकी हैं। इन आरोपों को एक सिरे से खारिज कर दिया गया है। ईसीआई ने स्पष्ट रूप से यह बात दोहराई कि ईवीएम में निहित कारगर तकनीकी एवं प्रशासनिक हिफाजतों को देखते हुए ईवीएम में कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है और इस तरह चुनाव प्रक्रिया की प्रामाणिकता संरक्षित रहती है।

नागरिकों एवं सभी संबंधित लोगों की जानकारी के लिए इस विषय के मद्देनजर कुछ तथ्यों पर एक बार फिर प्रकाश डालना उपयोगी साबित होगा।

ईवीएम की पृष्ठभूमि:

मतपत्रों के उपयोग से जुड़ी कुछ विशेष समस्याओं से निजात पाने और प्रौद्योगिकी के विकास से लाभ उठाने के उद्देश्य से आयोग ने दिसंबर, 1977 में ईवीएम का विचार सामने रखा था, ताकि मतदाता बगैर किसी संशय के सही ढंग से अपने वोट डाल सकें और अवैध वोटों की संभावनाओं को पूरी तरह से खत्म किया जा सके। संसद द्वारा दिसंबर 1988 में इस कानून को संशोधित किया गया था और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में एक नई धारा 61ए को जोड़ा गया था जिसके तहत वोटिंग मशीनों के उपयोग के लिए आयोग को अधिकार दिया गया था। संशोधित प्रावधान 15 मार्च, 1989 से प्रभावी हुआ।

केन्द्र सरकार ने जनवरी 1990 में चुनाव सुधार समिति का गठन किया था जिसमें अनेक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दलों के प्रतिनिधि शामिल थे। चुनाव सुधार समिति ने बाद में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का आकलन करने के उद्देश्य से एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। समिति ने यह निष्कर्ष निकाला कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन एक सुरक्षित प्रणाली है। अत: विशेषज्ञ समिति ने और समय बर्बाद किये बगैर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग किये जाने के बारे में अप्रैल 1990 में सर्वसम्मति से सिफारिश की।

वर्ष 2000 के बाद ईवीएम का उपयोग राज्य विधानसभाओं के लिए हुए 107 चुनावों और वर्ष 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा के लिए हुए 3 चुनावों में किया जा चुका है।

ईवीएम के इस्तेमाल पर न्यायिक निर्णय :

वर्ष 2001 के बाद ईवीएम में संभावित छेड़छाड़ के मसले को विभिन्न उच्च न्यायालयों में उठाया जा चुका है, जिसका उल्लेख नीचे किया गया है:

मद्रास उच्च न्यायालय-2001
दिल्ली उच्च न्यायालय-2004
कर्नाटक उच्च न्यायालय-2004
केरल उच्च न्यायालय-2002
बॉम्बे उच्च न्यायालय (नागपुर बेंच)-2004

उपर्युक्त सभी उच्च न्यायालयों ने भारत में हुए चुनावों में ईवीएम के उपयोग में निहित तकनीकी सुदृढ़ता और प्रशासनिक उपायों के समस्त पहलुओं पर गौर करने के बाद यह पाया है कि भारत में ईवीएम विश्वसनीय, भरोसेमंद एवं पूरी तरह से छेड़छाड़ मुक्त हैं। इनमें से कुछ मामलों में यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों के आदेशों के खिलाफ कुछ याचिकाकर्ताओं द्वारा दाखिल की गयी अपीलों को खारिज कर दिया है।

माननीय कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि “यह आविष्कार नि:संदेह इलेक्ट्रॉनिक एवं कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी से जुड़ी एक महान उपलब्धि और राष्ट्रीय गौरव है।”  कर्नाटक उच्च न्यायालय एवं मद्रास उच्च न्यायालय दोनों ने ही यह अवलोकन किया कि मतपत्र/मतपेटी वाली चुनाव प्रणाली की तुलना में चुनाव में ईवीएम के उपयोग के कई फायदे हैं। माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने भी स्पष्ट शब्दों में ईवीएम में छेड़छाड़ किये जाने की संभावना से साफ इनकार किया है। मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा किया गया निम्नलिखित अवलोकन ध्यान देने योग्य है।

“कोई वायरस या बग डालने का सवाल भी नहीं पैदा होता है क्योंकि ईवीएम की तुलना पर्सनल कम्प्यूटर से नहीं की जा सकती है। कम्प्यूटर में अंतर्निहित सीमाएं होती हैं क्योंकि उसमें इंटरनेट के जरिए कनेक्शन होता है और उसके विशेष डिजाइन को देखते हुए प्रोग्राम विशेष में छेड़छाड़ की जा सकती है, लेकिन ईवीएम स्वतंत्र इकाइयां होती हैं और ईवीएम में प्रोग्राम पूरी तरह से एक भिन्न प्रणाली के रूप में होता है।”

इसके पश्चात, वर्ष 2009 में हुए आम चुनाव के बाद भी राजनीतिक दलों ने यह कहते हुए इस मसले को तूल दिया था कि ईवीएम पूरी तरह से छेड़छाड़ मुक्त नहीं हैं और इसमें फेरबदल की गुंजाइश रहती है। हालांकि, कोई विशिष्ट आरोप नहीं लगाया गया और न ही किसी अदालत में वे इसे साबित कर पाये।

कुछ कार्यकर्ताओं ने वर्ष 2009 में उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने उन्हें ईसीआई जाने की सलाह दी। उसके बाद ही इन कार्यकर्ताओं ने खुला संवाद किया। उधर, ईसीआई ने यह खुली चुनौती दी कि क्या कोई भी व्यक्ति यह साबित कर सकता है कि ईसीआई के पास मौजूद  मशीन से छेड़छाड़ की जा सकती है। हालांकि, ईसीआई द्वारा दिये गये अवसरों के तहत मशीनों को खोलने एवं आंतरिक कलपुर्जों को खोलकर दिखाने के बावजूद कोई भी व्यक्ति ईसीआई के मुख्यालय में इस मशीन में किसी भी तरह की छेड़छाड़ की गुंजाइश को प्रदर्शित नहीं कर पाया। इस कार्यवाही की वीडियोग्राफी भी की गयी।

वर्ष 2010 में ईसीआई द्वारा बुलाई गयी एक बैठक में असम एवं तमिलनाडु के कुछ राजनीतिक दलों को छोड़ सभी राजनीतिक दलों ने ईवीएम के कामकाज के तरीके पर संतुष्टि जताई। उसी दौरान वीवीपीएटी का विचार सामने रखा गया, ताकि आगे और ज्यादा जांच संभव हो सके।

ईसीआई द्वारा उपयोग की गयी ईवीएम में तकनीकी सुरक्षा:

इस मशीन में छेड़छाड़/फेरबदल की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए इसे इलेक्ट्रॉनिक तरीके से सुरक्षित बनाया गया है। इन मशीनों में उपयोग किये गये प्रोग्राम (सॉफ्टवेयर) को तप्त करके वन टाइम प्रोग्राम/मास्क्ड चिप का रूप दे दिया जाता है, ताकि इसमें किसी भी तरह का फेरबदल अथवा छेड़छाड़ कतई संभव न हो सके। इसके अलावा, इन मशीनों की न तो किसी वायर के जरिये अथवा वायरलेस ढंग से ही किसी अन्य मशीन या प्रणाली से नेटवर्किंग की जाती है। अत: इसके डेटा में फेरबदल की कोई भी संभावना नहीं रहती है।

ईवीएम के सॉफ्टेवयर को बीईएल (रक्षा मंत्रालय का पीएसयू) और ईसीआईएल (परमाणु ऊर्जा मंत्रालय का पीएसयू) के इंजीनियरों के एक चुनिंदा समूह द्वारा एक-दूसरे से बिल्कुल अलग इन-हाउस विकसित किया जाता है। दो-तीन इंजीनियरों का एक चुनिंदा सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट समूह सोर्स कोड की डिजाइनिंग करता है तथा इस कार्य के लिए किसी और से अनुबंध नहीं किया जाता है।

सॉफ्टवेयर की डिजाइनिंग का काम पूरा हो जाने के बाद सॉफ्टवेयर का परीक्षण एवं आकलन सॉफ्टवेयर आवश्यकता विनिर्देशों (एसआरएस) के अनुसार एक स्वतंत्र परीक्षण समूह द्वारा किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि वास्तव में केवल निर्धारित उपयोग के लिए ही तय की गयी आवश्यकताओं के अनुरूप इस सॉफ्टेवयर को लिखा गया है।

ईवीएम के सोर्स कोर्ड को हमेशा नियंत्रित स्थितियों में स्टोर करके रखा जाता है। इसकी निगरानी एवं नियंत्रण की पूरी व्यवस्था की जाती है, ताकि केवल अधिकृत अधिकारीगण ही इस कोड तक पहुंच सकें।

वर्ष 2006 में कुछ अतिरिक्त खूबियां ईसीआई-ईवीएम में डाली गयीं जैसे कि बैलट यूनिट (बीयू) और कंट्रोल यूनिट (सीयू) के बीच गतिशील कोडिंग, रीयल टाइम घड़ी लगाना, पूर्ण डिस्प्ले सिस्टम लगाना और ईवीएम में हर बार बटन को दबाने पर तारीख और समय का अंकित होना।

ईसीआई-ईवीएम की विशिष्टता:

कुछ राजनीतिक दलों ने कहा है कि विदेश में कई देशों ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया है। आयोग ने ईसीआई-ईवीएम और विदेश में उपयोग की गयी ईवीएम के बीच तुलना की है। इस तरह की तुलना गलत के साथ-साथ गुमराह करने वाली भी है। ईसीआई-ईवीएम अपने-आप में बिल्कुल अलग एवं स्वतंत्र मशीन है। अत: ईसीआई-ईवीएम की तुलना अन्य देशों की मशीनों से नहीं की जा सकती है।

अन्य देशों में इस्तेमाल किये गये ज्यादातर सिस्टम इंटरनेट कनेक्टिविटी से युक्त कम्प्यूटर आधारित हैं। अत: इन सिस्टमों की हैकिंग किये जाने का खतरा बना रहता है।

ईसीआई-ईवीएम विभिन्न देशों में अपनायी गयी वोटिंग मशीनों और प्रक्रियाओं से बुनियादी तौर पर बिल्कुल भिन्न है।

प्रक्रियात्मक और प्रशासनिक सुरक्षा:

आयोग ने सुरक्षा उपायों की एक विस्तृत प्रशासनिक प्रणाली और प्रक्रियात्मक निगरानी एवं नियंत्रण की पुख्ता व्यवस्था कर रखी है जिसका उद्देश्य किसी भी संभावित दुरुपयोग अथवा प्रक्रियात्मक खामी की रोकथाम सुनिश्चित करना है। ईसीआई द्वारा इन सुरक्षा उपायों पर पारदर्शी रूप से अमल किया जाता है जिसमें हर चरण में राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों की सक्रिय एवं दस्तावेज संबंधी भागीदारी रहती है, ताकि ईवीएम की प्रभावकारिता और विश्वसनीयता पर उनका विश्वास सदैव बना रहे। ये सुरक्षा उपाय निम्नलिखित हैं:

(ए) प्रत्‍येक चुनाव के पहले राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ईवीएम बनाने वाली कंपनियों के इंजीनियरों द्वारा चुनाव में उपयोग में लाये जाने वाली प्रत्‍येक प्रत्‍येक ईवीएम की प्रथम स्‍तरीय जांच (एफएलसी) की जाती है। किसी ईवीएम में गडबडी पाये जाने पर उसे अलग रख दिया जाता है और चुनाव में उसका उपयोग नहीं होता।

(बी) प्रथम स्‍तर की जांच के समय ईवीएम बनाने वाली कंपनी प्रमाणित करती है कि ईवीएम में लगाये गये सभी उपकरण मौलिक हैं। इसके बाद ईवीएम की प्‍लास्टिक कैबिनेट नियंत्रण इकाई गुलाबी कागज की सील से सील की जाती है। इस पर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि हस्‍ताक्षर करते हैं और इसे स्‍ट्रॉंग  रूम में रखा जाता है। इस चरण के बाद ईवीएम की प्‍लास्टिक कैबिनेट नियंत्रण इकाई को खोला नहीं जा सकता। ईवीएम के अंदर किसी तरह के उपकरण का प्रयोग नहीं हो सकता।

(सी) इसके अतिरिक्‍त, प्रथम स्‍तरीय जांच के समय राजनीतिक दलों द्वारा चुनी गई पांच प्रतिशत इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों द्वारा कम से कम एक हजार वोट डाले जाते हैं। इस बनावटी मतदान के परिणामों के प्रिंट आउट और प्रथम स्‍तरीय जांच के समय बनावटी मतदान के दौरान क्रमानुसार डाले गये प्रत्‍येक वोट का प्रिंटआउट कम से कम पांच प्रतिशत ईवीएम के लिए निकाला जाता है और प्रिंटआउट राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को दिखाये जाते हैं। इसके लिए राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को इस बात की अनुमति दी जाती है कि वे अपनी इच्‍छा अनुसार  मशीने उठायें। शेष मशीनों में  बनावटी मतदान के दौरान डाले गये मतों से राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को संतुष्‍ट कराया जाता है। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को स्‍वयं बनावटी मतदान संपन्‍न करने की अनुमति है। इसे डीओ/आरओ द्वारा दस्‍तावेज के रूप में दर्ज किया जाता है।

(डी) इसके बाद रखी गयी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में आवंटित करने के लिए ईवीएम मशीनों को दो बार कंप्‍यूटर सॉफ्टवेयर द्वारा खंगाला जाता है और ईवीएम मशीनों को उपयोग में लाने के लिए मतदान केंद्रों को वितरित करने से पहले उम्‍मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में मतदान केन्‍द्रों के लिए स्‍थानांतरित किया जाता है। राजनीतिक दलों /उम्‍मीदवारों को ईवीएम क्रम संख्‍या वाली सूची दी जाती है।

(ई) उम्‍मीदवारों तथा उनके प्रतिनिधियों को उम्‍मीदवार सेटिंग के समय ईवीएम पर बनावटी मतदान संचालित करने की अनुमति दी जाती है और मतदान के दिन वास्‍तविक मतदान से पहले भी उम्‍मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों को इस तथ्‍य से संतुष्‍ट कराया जाता है कि ईवीएम मशीनें संतोषजनक रूप से काम कर रही हैं।

(एफ) उम्‍मीदवार सेटिंग का काम हो जाने के बाद ईवीएम की बैलट इकाई धागे / गुलाबी कागज की सील से सील की जाती है ताकि बैलट इकाई के अंदर किसी की पहुंच न हो सके। इन गुलाबी सीलों पर राजनीतिक दलों/ उम्‍मीदवार के प्रतिनिधियों के हस्‍ताक्षर होते हैं।

(जी) बनावटी मतदान के परिणामों के प्रिंटआउट तथा बनावटी मतदान के दौरान डाले गये क्रमानुसार प्रत्‍येक वोट के प्रिंटआउट कम से कम पांच प्रतिशत ईवीएम मशीनों के लिए ईवीएम तैयार करने और उम्‍मीदवार सेटिंग के समय निकाले जाते हैं और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को दिखाया जाता है। इसके लिए राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को उनकी इच्‍छानुसार मशीनें चुनने की अनुमति है।

(एच) मतदान के दिन प्रत्‍येक मतदान केन्‍द्र पर उम्‍मीदवारों के प्रतिनिधियों / पोलिंग एजेंटों की उपस्थिति में कम से कम 50 मतों का बनावटी मतदान संपन्‍न कराया जाता है और प्रत्‍येक पीठासीन अधिकारी से बनावटी मतदान का प्रमाण पत्र प्राप्‍त किया जाता है।

(आई) बनावटी मतदान खत्‍म होने के बाद ईवीएम मशीनें धागे और हरे कागज की सील से सील की जाती है ताकि चुनाव कराने के लिए उपयोग में आने वाले बटनों को छोडकर सभी बटन तक पहुंच ब्‍लॉक कर दी जाए। कागज और धागे की इन सीलों पर पोलिंग एजेंटों के हस्‍ताक्षर की अनुमति है। मतदान सम्‍पन्‍न होने के बाद पोलिंग एजेंटों की उपस्थिति में पीठासीन अधिकारी ‘’क्‍लोज’’ बटन दबाते हैं। इसके बाद  ईवीएम मशीन में कोई वोट नहीं डाला जा सकता।

(जे) इसके बाद पूरी ईवीएम सील कर दी जाती है। सीलों पर उम्‍मीदवारों और उनके हस्‍ताक्षर की अनुम‍ति होती है। मतगणना शुरू होने से पहले उम्‍मीदवार और उनके एजेंट हस्‍ताक्षर सटीक होने की जांच कर सकते हैं। मतदान केन्‍द्रों से मतगणना स्‍टोर रूम तक ईवीएम मशीनों को ले जाने वाले वाहनों के पीछे-पीछे उम्‍मीदवार/ उनके प्रतिनिधि चलते हैं।

(के) इसके अतिरिक्‍त मतगणना के लिए ईवीएम मशीनें रखने के लिए बने स्‍ट्रॉंगरूम को सील कर दिया जाता है और स्‍ट्रॉंग रूमों की दिन-रात निगरानी की जाती है। स्‍ट्रॉंगरूम की सीलों पर उम्‍मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों के हस्‍ताक्षर की अनुमति है। उन्‍हें दिन रात स्‍ट्रॉंगरूम पर नजर रखने की अनुमति है।

(एल) सभी राजनीतिक दलों के उम्‍मीदवारों के प्रतिनिधियों को प्रथम चरण की जांच, मतदान से पहले ईवीएम मशीनें तैयार करने, बनावटी मतदान आदि में भाग लेने का अवसर दिया जाता है।

10  मतदाता सत्‍यापन योग्‍य पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी)

भारत निर्वाचन आयोग ने 2010 में राजनीतिक दलों के साथ हुई मंत्रणा के आधार पर पारदर्शिता बढाने की दृष्टि से मतदाता सत्‍यापन योग्‍य प्रेपर ओडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के उपयोग करने पर विचार किया। वीवीपीएटी लागू करने का अर्थ यह है कि नियंत्रण इकाई में मत की रिकॉर्डिंग के साथ उम्‍मीदवार के नाम और चुनाव चिन्‍ह् वाली कागजी पर्ची निकाली जा सके ताकि किसी तरह के विवाद के मामले में ईवीएम मशीनों में दिखाये जा रहे परिणाम की पुष्टि कागजी पर्जी गिनकर की जा सके। वीवीपीएटी के अंतर्गत बैलट इकाई से प्रिंटर जुड़ा होता है और इसे मतदान के खांचे में रखा जाता है। सात सेकेंड के लिए वीवीपीएटी पर कागजी पर्ची दिखती है। वीएल / ईसीआईएल द्वारा निम्रित वीवीपीएटी के डिजाइन की मंजूरी 2013 ने भारत निर्वाचन आयोग द्वारा दी गई और उन लोगों को दिखाया गया जो इस मामले को उच्‍चतम न्‍यायालय में ले गये। नियमों में संशोधन किये गये। भारत निर्वाचन आयोग ने 2013 में नगालैंड के उप चुनाव में वीवीपीएटी का उपयोग किया। यह उपयोग काफी सफल रहा। उच्‍चतम न्‍यायालय ने चरणबद्ध तरीके से वीवीपीएटी लगाने का आदेश दिया और सरकार से वीवीपीएटी प्राप्‍त करने के लिए धन स्‍वीकृ‍त करने को कहा।

इस संबंध में जून 2014 में आयोग ने 2019 में होने वाले लोकसभा आम चुनाव में प्रत्‍येक मतदान केन्‍द्र पर वीवीपीएटी लागू करने का प्रस्‍ताव किया और सरकार से 317 करोड़ रूपये की राशि मांगी। माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय ने भी चरणबद्ध तरीके से वीवीपीएटी लागू करने की अनुमति भारत निर्वाचन आयोग को दी।

उच्‍चतम न्‍यायालय में चल रहे मामले में आयोग ने मार्च 2017 में शीर्ष अदालत को बताया कि भारत निर्वाचन आयोग सरकार की ओर से राशि जारी करने के समय से 30 महीनों में बने आवश्‍यक संख्‍या में वीवीपीएटी प्राप्‍त कर लेगा।

2013 में भारत निर्वाचन आयोग को 20 हजार वीवीपीएटी प्राप्‍त हुए और तब से 143 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में वीवीपीएटी का उपयोग किया गया है। वर्ष 2016 में बीईएल द्वारा 33500 वीवीपीएटी तैयार किये गये हैं। अब तक 255 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों और 9 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में वीवीपीएटी का उपयोग किया गया है। 2017 में गोवा चुनाव में सभी 40 विधानसभा क्षेत्रों में वीवीपीएटी की तैनाती की गई थी। हाल में पांच राज्‍यों में हुए चुनाव में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 52000 वीवीपीएटी की तैनाती की गई थी। भारत निर्वाचन आयोग 2014 से आवश्‍यक संख्‍या में वीवीपीएटी तैयार करने के लिए सरकार से 3174 करोड़ रूपये की राशि जारी करने का आग्रह कर रहा है, ताकि 2019 के लोकसभा आम चुनाव में सभी मतदान केन्‍द्रों पर वीवीपीएटी का उपयोग हो सके।

जैसा की ऊपर बताया गया है आयोग ने चुनाव में ईवीएम के कार्य दोषमुक्‍त तरीके से सुनिश्चित करने के लिए व्‍यापक तकनीकी और प्रशासनिक प्रणाली की व्‍यवस्‍था की है। इस तरह आयोग भारत निर्वाचन आयोग- ईवीएम के सुरक्षित कामकाज को लेकर पूरी तरह संतुष्‍ट है। यह कहा जा सकता है कि इस तरह के आरोप और शंकाएं पहली बार नहीं व्‍यक्‍त की गई हैं। पहले भी आयोग ने अनेक बार ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगाने वालों को संतुष्‍ट होने का अवसर दिया है और कोई भी यह दिखा नहीं पाया है कि देश की चुनाव प्रक्रिया में उपयोग में लाई गई भारत निर्वाचन आयोग की ईवीएम मशीनें में जोड़ तोड़ और छेड़छाड़ की जा सकती है। आयोग इस तरह के आरोपों में किसी तरह का तथ्‍य  नहीं पाता और कुछ राजनीतिक दलों द्वारा लगाये गये आरोपों और व्‍यक्‍त की गई शंकाओं को आयोग नामंजूर करता है।

भारत निर्वाचन आयोग सभी नागरिकों को आश्‍वस्‍त करता है कि भारत निर्वाचन आयोग की ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती और आयोग ईवीएम उपयोग करने वाली निर्वाचन प्रक्रिया की शुद्धता से पूरी तरह संतुष्‍ट है। भारत निर्वाचन आयोग चरणबद्ध तरीके से वीवीपीएटी की तैनाती करके निर्वाचन प्रक्रिया में नागरिकों के विश्‍वास को और आगे बढ़ायेगा।

हाल में सम्‍पन्‍न चुनाव प्रक्रिया के दौरान ईवीएम मशीनों से कथितरूप से छेड़छाड़ के बारे में आयोग को राजनीतिक दलों / उम्‍मीदवारों की ओर से कोई विशेष शिकायत या ठोस सामग्री नहीं प्राप्‍त हुई है। अभी आधारहीन, अनुमानित और बेबुनियाद आरोप लगाये जा रहे हैं और ये सभी आरोप नामंजूर करने के योग्‍य हैं।

निर्वाचन आयोग इस बात पर बल देना चाहेगा कि उसे हमेशा यह संतुष्टि रही है कि ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता। 2004, 2009 तथा 2014 में हुए राष्‍ट्रव्‍यापी आम चुनावों सहित पिछले अनेक वर्षों में हुए चुनावों में मशीनों के उपयोग के बारे में आयोग की आस्‍था कभी नहीं डिगी। आज की तिथि तक कोई यह नहीं दिखा सका है कि निर्वाचन द्वारा उपयोग की जाने वाली ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ किया जा सकता है और इसमें किसी तरह का जोड़ तोड़ किया जा सकता है। जो दिखाया गया है और दिखाये जाने का दावा किया जा रहा है वह नि‍जी रूप से एकत्रित भारत निर्वाचन आयोग की तरह दिखने वाली मशीने हैं और भारत निर्वाचन आयोग की वास्‍तविक ईवीएम मशीनें नहीं हैं। भारत निर्वाचन आयोग मुख्‍यालय में 2009 में असाधारण कदम उठाते हुए ईवीएम मशीनों के बारे में छोटे से छोटे संदेह और गलतफहमियों को दूर करने के लिए डिमॉन्‍सट्रेशन किया गया था। आज आयोग एक बार फिर ईवीएम मशीनों के अचूक होने के बारे में अपने विश्‍वास की पूरी तरह पुष्टि करता है। हमेशा कि तरह ईवीएम मशीनें छेड़छाड़ मुक्‍त हैं।  

राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति 2017: सभी को मिलेगा फ्री में इलाज,पढ़िए पूरी जानकारी


राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति, 2017 पर संसद के दोनों सदनों में 16 मार्च,2017 को स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा द्वारा वक्‍तव्‍य 

मंत्रिमंडल ने राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति 2017 को अनुमोदित कर दिया है। यह देश के स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र के इतिहास में बहुत बड़ी उपलब्‍धि है। स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी के मार्गदर्शन में राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति 2017 बनाई है। पिछली राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति 2002 में बनाई गई थी। इस प्रकार, यह नीति बदलते सामाजिक-आर्थिक, प्रौद्योगिकीय और महामारी-विज्ञान परिदृश्‍य में मौजूदा और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए 15 साल के अंतराल के बाद अस्‍तित्‍व में आई है।

भारत सरकार ने नीति निर्माण की प्रक्रिया में अत्‍यधिक सहभागितापूर्ण और परामर्शी दृष्‍टिकोण अपनाया है। राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति के प्रारूप को 30 दिसंबर, 2014 को पब्‍लिक डोमेन पर डाला गया था। इसके बाद नीति को और अधिक कारगर बनाने के लिए राज्‍य सरकारों और अन्‍य पणधारकों के साथ विचार-विमर्श किया गया। इस नीति को केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण परिषद, जो शीर्ष नीति निर्माण निकाय है, के समक्ष प्रस्‍तुत किया गया और इसकी एकमत से पुष्‍टि की गई।

नीति में इसके सभी आयामों - स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में निवेश, स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सेवाओं का प्रबंधन और वित्‍त-पोषण करने, विभिन्‍न क्षेत्रीय कार्रवाई के जरिए रोगोंकी रोकथाम और अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने,चिकित्‍सा प्रौद्योगिकियां उपलब्‍ध कराने,मानव संसाधन का विकास करने,चिकित्‍सा बहुलवाद को प्रोत्‍साहित करने, बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अपेक्षित ज्ञान आधार बनाने, वित्‍तीय सुरक्षा कार्यनीतियां बनाने तथा स्‍वास्‍थ्‍य के विनियमन और उत्तरोत्तर आश्‍वासन के संबंध में स्‍वास्‍थ्‍य प्रणालियों को आकार देने में सरकार की भूमिका और प्राथमिकताओं की जानकारी दी गई है। इस नीति का उद्देश्‍य सभी लोगों, विशेषकर अल्‍पसेवित और उपेक्षित लोगों को सुनिश्चित स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल उपलब्‍ध कराना है।

नीति का लक्ष्‍य सभी विकास नीतियों में एक निवारक और प्रोत्‍साहक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल दिशानिर्देश के माध्‍यम से सभी वर्गों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य और कल्‍याण का उच्‍चतम संभव स्‍तर प्राप्‍त करना, तथा इसके परिणामस्‍वरूप किसी को भी वित्‍तीय कठिनाई का सामना किए बिना बेहतरीन गुणवत्‍तापरक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सेवाएं प्रदान करनाहै। इसे उपलब्‍धता का विस्‍तार करके,स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल प्रदानगी की गुणवत्‍ता में सुधार करके तथा लागतकोकम करकेप्राप्‍त कियाजा सकता है। नीति के व्‍यापक सिद्धांत व्‍यावसायिकता, सत्‍यनिष्‍ठा और नैतिकता,निष्‍पक्षता,सामर्थ्‍य, सार्वभौमिकता, रोगी केन्‍द्रित तथा परिचर्या गुणवत्‍ता, जवाबदेही और बहुलवाद पर आधारित हैं।

नीति में रोकथाम और स्‍वास्‍थ्‍य संवर्धन पर बल देते हुए रुग्‍णता-देखभाल की बजाय आरोग्‍यता पर ध्‍यान केन्‍द्रित करने की अपेक्षा की गई है। हालांकि नीति में जन स्‍वास्‍थ्‍य प्रणालियों की दिशा बदलने तथा उसे सुदृढ़ करने की मांग की गई है, इसमें निजी क्षेत्र से कार्यनीतिक खरीद पर विचार करने और राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने में अपनी शक्‍तियों का इस्‍तेमाल करने की भी नए सिरे सेअपेक्षा की गई है। नीति में निजी क्षेत्र के साथ सुदृढ़ भागीदारी करने की परिकल्‍पना की गई है।

एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में, नीति में जन स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यय को समयबद्ध ढंग से जीडीपी के 2.5% तक बढ़ाने का प्रस्‍ताव किया गया है। नीति में उत्‍तरोत्‍तर वृद्धिशील आश्‍वासन आधारित दृष्‍टिकोण की वकालत की गईहै। इसमें ‘स्‍वास्‍थ्‍यऔर आरोग्‍यता केन्‍द्रों’ के माध्‍यम से सुनिश्‍चित व्‍यापक प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल का बड़ा पैकेज प्रदान करने की परिकल्‍पना की गई है तथा यह अत्‍यधिक चयनित से व्‍यापक प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल पैकेज में महत्‍वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाताहै,जिसमें प्रमुख एनसीडी, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य, जराचिकित्‍सा स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल, उपशामक परिचर्यातथा पुनर्वास देखभाल सेवाएं शामिल हैं। 

इसमें प्राथमिक परिचर्या के लिए संसाधनों के व्‍यापक अनुपात (दो-तिहाई या अधिक)आवंटन करने की हिमायत की गई है। इसका उद्देश्‍य प्रति 1000 की आबादी के लिए 2 बिस्‍तरों की उपलब्‍धता इस तरह से सुनिश्चित करनाहै ताकि आपात स्‍थिति में जरूरत पड़ने पर इसे उपलब्‍ध कराया जा सके। 

इस नीति में उपलब्‍धता तथा वित्‍तीय सुरक्षा उपलब्‍ध कराने के लिए सभी सार्वजनिक अस्‍पतालोंमें नि:शुल्‍क दवाएं, नि:शुल्‍क निदान तथा नि:शुल्‍क आपात तथा अनिवार्य स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सेवाएं प्रदान करने का प्रस्‍ताव किया गया है।

नीति में विशिष्‍ट मात्रात्‍मक लक्ष्‍यों को भी निर्धारित किया गया है,जिनका उद्देश्‍य 3 व्‍यापक घटकों अर्थात् (क) स्‍वास्‍थ्‍य स्‍थिति और कार्यक्रम प्रभाव, (ख) स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली निष्‍पादन, तथा (ग) स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली का सुदृढ़ीकरण के द्वारा बीमारियों को कम करना है जो नीतिगत उद्देश्‍यों के अनुरूप हों। नीति में जिन कुछेक प्रमुख लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने की अपेक्षा की गई है वे निम्‍नलिखित हैं:-

जीवन प्रत्‍याशा और स्‍वस्‍थ जीवन:

जन्‍म के समय आजीवन प्रत्‍याशा को 5 से बढ़ाकर 2025 तक 70 करना।
2022 तक प्रमुख वर्गों में रोगों की व्‍याप्‍तता तथा इसके रुझान को मापने के लिए विक्‍लांगता समायोजित आयु वर्ष (डीएएलवाई) सूचकांक की नियमित निगरानी करना।
2025 तक राष्‍ट्रीय और उप-राष्‍ट्रीय स्‍तर पर टीएफआर को घटाकर1 तक लाना।


आयु और/या कारणों द्वारा मृत्‍यु दर:

2025 तक पांच वर्ष से कम आयु के बच्‍चों में मृत्‍यु दर को कम करके 23 करना तथा एमएमआर के वर्तमान स्‍तर को 2020 तक घटाकर 100 करना।
नवजात शिशु मृत्‍यु दर को घटाकर 16 करना तथा मृत जन्‍म लेने वाले बच्‍चों की दर को 2025 तक घटाकर “एक अंक’ में लाना।


रोगों की व्‍याप्‍तता / घटनाओं में कमी लाना:

2020 के वैश्‍विक लक्ष्‍य को प्राप्‍त करना, जिसे एचआईवी / एड्स के लिए 90:90:90 के लक्ष्‍य के रूप में भी परिभाषित किया गया है अर्थात् एचआईवीपीड़ित सभी 90% लोग अपनी एचआईवी स्‍थिति के बारे में जानते हैं – एचआईवी संक्रमण से पीड़ित सभी 90% लोग स्‍थायी एंटीरोट्रोवाइरल चिकित्‍सा प्राप्‍त करते हैं तथा एंटीरोट्रोवाइरल चिकित्‍सा प्राप्‍त करने वाले सभी 90% लोगों में बॉयरल रोकथाम होगी।

2018 तक कुष्‍ठ रोग,2017 तक कालाजार तथा 2017 तक स्‍थानिकमारी वाले क्षेत्रों में लिम्‍फेटिक फिलारिएसिस का उन्‍मूलन करना तथा इस स्‍थिति को बनाए रखना।

क्षयरोग के नए स्‍पुटम पाजिटिव रोगियों में 85% से अधिक की इलाज दर को प्राप्‍त करना और उसे बनाए रखना तथा नए मामलों की व्‍याप्‍तता में कमी लाना ताकि 2025 तक इसके उन्‍मूलन की स्‍थिति प्राप्‍त की जा सके।

2025 तक दृष्‍टिहीनता की व्‍याप्‍तता को घटाकर 25/1000 करना तथा रोगियों की संख्‍या को वर्तमान स्‍तर से घटाकर एक-तिहाई करना।

हृदवाहिका रोग, कैंसर, मधुमेह या सांस के पुराने रोगों से होने वाली अकाल मृत्‍यु को 2025 तक घटाकर 25% करना।

इस नीति में गैर-संचारी रोगोंकी उभरती चुनौतयों से निपटने पर ध्‍यान केन्‍द्रित किया गया है। यह समन्‍वित दृष्‍टिकोणका समर्थन करती है,जिसमें द्वितीयक स्‍तर पर रोकथाम सहित सर्वाधिक प्रचलितएनसीडी की जांच से रुग्‍णता को कम करने और रोकी जा सकने वाली मृत्‍यु दर पर पर्याप्त प्रभाव पड़ेगा।

नीति में आयुष प्रणाली के त्रि-आयामी एकीकरण की परिकल्‍पना की गई है जिसमें क्रॉस रेफरल, सह-स्‍थल और औषधियों की एकीकृत पद्धतियां शामिल हैं। इसमें प्रभावी रोकथाम तथा चिकित्‍सा करने की व्‍यापक क्षमता है, जो सुरक्षित और किफायती है। योग को अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य के संवर्धन के भाग के रूप में स्‍कूलों और कार्यस्‍थलों में और अधिक व्‍यापक ढंग से लागू किया जाएगा।

विनियामक परिवेश में सुधार करने और उसे सुदृढ़ बनाने के लिए नीति में मानक तय करने के लिए प्रणालियां निर्धारित करने तथा स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल की गुणवत्‍ता सुनिश्‍चित करनेकी परिकल्‍पना की गई है। यह नीति रोगी आधारित है और इसमें रोगियों को उनकी सभी समस्‍याओं का निदान करने का अधिकार प्रदान किया गया है। नीति में औषधियों और उपकरणों का सुलभता से विनिर्माण करने,मेक इन इंडिया को प्रोत्‍साहित करने तथा तथा चिकित्‍सा शिक्षा में सुधार करनेकी भी अपेक्षा की गई है। यह नीति व्‍यक्‍ति आधारित है, जो चिकित्‍सा परिचर्या चाहता है।

नीति में मध्‍य स्‍तरीयसेवा प्रदायक कैडर,नर्स प्रेक्‍टिशनरों,जन स्‍वास्‍थ्‍य कैडर का विकास करने की हिमायत की गई है ताकिउपयुक्‍त स्‍वास्‍थ्‍य मानव संसाधन की उपलब्‍धता में सुधार हो सके।

नीति में स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा का समाधान करने तथा औषधियों और उपकरणों के लिए मेक इन इंडिया को लागू करने की परिकल्‍पना की गई है। इसमें जन स्‍वास्‍थ्‍य लक्ष्‍यों को ध्‍यान में रखते हुए चिकित्‍सा उपकरणों तथा उपस्‍करों के लिए अन्‍य नीतियों के साथ सामंजस्‍य स्‍थापित करने की भी परिकल्‍पना की गई है।

नीति में नीतिगत लक्ष्‍यों को प्राप्त करने के लिए स्‍पष्‍ट प्रदानगी तथा उपलब्‍धियों सहित एक समयबद्ध कार्यान्वयन ढांचा लागू करने की परिकल्‍पना की गई है।



नमामि गंगे:उत्‍तराखंड,बिहार,झारखंड,दिल्‍ली में शुरू होंगी 19 अरब की परियोजनाएं


नमामि गंगे कार्यक्रम के शीघ्र कार्यान्वयन के लिए 19 अरब रुपये लागत की परियोजनाओं को मंजूरी 
उत्‍तराखंड, बिहार, झारखंड और दिल्‍ली में शुरू होंगी 20 परियोजनाएं 

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की कार्यकारी समिति ने गंगा को स्वच्छ बनाने के अभियान में तेजी लाने के लिए करीब 19 अरब रुपये लागत वाली परियोजनाओं को मंजूरी प्रदान कर दी है। कार्यकारी समिति की 02 मार्च, 2017 को हुई बैठक में मंजूर की गई 20 परियोजनाओं में से 13 उत्तराखंड से सम्बद्ध है जिनमें नए मलजल उपचार संयंत्रों की स्थापना, मौजूदा सीवर उपचार संयंत्रों का उन्नयन और हरिद्वार में मलजल नेटवर्क कायम करने जैसे कार्य शामिल हैं। इन सभी पर करीब 415 करोड़ रुपये की लागत आएगी। हरिद्वार देश के सर्वाधिक पवित्र शहरों में से एक है, जहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं। अनुमोदित योजना का लक्ष्य न केवल शहर के 1.5 लाख स्थानीय निवासियों द्वारा, बल्कि विभिन्न प्रयोजनों के लिए इस पवित्र स्थान की यात्रा करने वाले लोगों द्वारा उत्सर्जित मलजल का उपचार भी करना है। इन सभी परियोजनाओँ के लिए केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण वित्त पोषण किया जाएगा। यहाँ तक कि इन परियोजनाओं के प्रचालन और रख-रखाव का खर्च भी केंद्र सरकार वहन करेगी।

उत्तराखंड में अनुमोदित अन्य परियोजनाओं में से चार परियोजनाएं अलकनंदा नदी का प्रदूषण दूर करने से संबंधित है, ताकि नीचे की तरफ नदी की धार का स्वच्छतर प्रवाह सुनिश्चित किया जा सके।  इसमें गंदे पानी के नालों को नदी में जाने से रोकने के लिए उनका मार्ग बदलना, बीच मार्ग में अवरोधक संयंत्र लगाना और साथ ही चार महत्वपूर्ण स्थानों – जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग और कीर्तिनगर में नए लघु एसटीपीज़ लगाना शामिल है, जिन पर करीब 78 करोड़ रूपये की लागत आएगी। इनके अलावा गंगा का प्रदूषण दूर करने के लिए ऋषिकेश में 158 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली एक बड़ी परियोजना का अनुमोदन किया गया है। गंगा जैसे ही पर्वत से उतरकर मैदानी भाग में प्रवेश करती है, तो वहीं ऋषिकेश से नगरीय प्रदूषक गंगा में मिलने शुरू हो जाते हैं। गंगा को इन प्रदूषकों से छुटकारा दिलाने के लिए ऋषिकेश में यह सर्व-समावेशी परियोजना शुरू करने को हरी झंडी दिखाई गयी है। इससे न केवल सभी शहरी नालों को ऋषिकेश में गंगा में जाने से रोका जा सकेगा बल्कि उत्सर्जित जल को उपचार के जरिए फिर से इस्तेमाल योग्य भी बनाया जाएगा। ऋषिकेश संबंधी इस विशेष परियोजना में लक्कड़घाट पर 26 एमएलडी क्षमता के नये एसटीपी का निर्माण किया जाएगा जिसके लिए ऑनलाइन निगरानी प्रणाली की भी व्यवस्था है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्‍ली में 665 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से उत्कृष्ट प्रदूषक मानकों के साथ 564 एमएलडी क्षमता के अत्याधुनिक ओखला मलजल उपचार संयंत्र के निर्माण की परियोजना भी अनुमोदित की गयी है। यह संयंत्र मौजूदा एसटीपी फेज़- I, II, III और IV का स्थान लेगा। इसके अलावा पीतमपुरा और कोंडली में 100 करोड़ रुपये से अधिक अनुमानित लागत वाली नई मलजल पाइपलाइनें बिछाने की दो परियोजनाएं भी मंजूर की गयी है, ताकि रिसाव रोका जा सके।

पटना में कर्मालिचक और झारखंड में राजमहल में 335 करोड़ रुपये से अधिक लागत से मलजल निकासी संबंधी कार्यों का भी कार्य समिति की बैठक में अनुमोदन किया गया। वाराणसी में, जहां वर्ष भर लाखों तीर्थ यात्री आते हैं, गंगा के प्रदूषण की समस्या का समाधान करने के लिए सार्वजनिक-निजी-भागीदारी यानी पीपीपी मॉडल वाली 151 करोड़ रुपये की परियोजना का भी कार्यकारिणी की बैठक में अनुमोदन किया गया। 

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