सरकार ने एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव किए हैं। इन बदलावों के बाद अब एमएसएमई को उनके निवेश के आधार पर नहीं बल्कि सालाना टर्नओवर के हिसाब से वर्गों में बाटा जाएगा। इससे कई कारोबारी एमएसएमई की सीमा से बाहर हो गए हैं। सरकार के इस कदम का असर एसी, केबल ऑपरेटर्स और ज्वेलर्स पर पड़ रहा है।
एमएसएमई डेवलपमेंट एक्ट 2006 में बदलाव की वजह से छोटे, मझोले कारोबारियों को वर्गीकृत करने के मानदंड बदल गए हैं। पहले मशीनरी या इक्विपमेंट में किए निवेश के आधार पर कारोबार को एमएसएमई के वर्गों में बाटा जाता था। अब एमएसएमई की नई परिभाषा के मुताबिक 5 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर वाले कारोबार को माइक्रो एंटरप्राइज माना जाएगा। वहीं जिस कारोबार का सालाना टर्नओवर 5 करोड़ से 75 करोड़ रुपये होगा उसे छोटा एंटरप्राइज माना जाएगा। मध्यम उद्योग वो होंगे जिसका सालाना टर्नओवर 75 करोड़ से 250 करोड़ रुपये के बीच होगा।
इन बदलावों के बाद कई कारोबारी माइक्रो और छोटे कारोबार की सीमा से बाहर निकलकर मध्यम वर्ग के कारोबार में आ गए हैं। सरकार के इस कदम का असर एसी, केबल ऑपरेटर्स और ज्वेलर्स पर पड़ रहा है।
फेडरेशन ऑफ माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। हालांकि फेडरेशन का मानना है कि मीडियम एंटरप्राइजेज के लिए रेवेन्यू सीमा 250 करोड़ रुपये तक बढ़ाने से बड़े कारोबारी भी इस वर्ग में शामिल हो जाएंगे। इससे छोटे कारोबारियों को दिक्कत हो सकती है। सरकार का मानना है कि इस कदम से बिजनेस करने में आसानी होगी और एमएसएमई के कारोबार में पारदर्शिता आएगी।
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